जरा याद करो कुर्बानी…सहादत को नमन के साथ.. 76 जवानों की दुःखद सहादत का दिन,छ्ग के नक्सल हिंसा का सबसे दुखद अध्याय..आज ही घटित हुआ था।-नितिन सिन्हा

दर्जनों दुर्दांत नक्सल हमलों की वजह से देश का सबसे कुख्यात कहा जाने वाले क्षेत्र बस्तर में अब तक का सबसे बड़ा नक्सल हमला आज ही के दिन छह अप्रैल 2010 को हुआ था। इस हमले में सीआरपीएफ के 79 जवान शहीद हुए थे।।
6 अप्रैल 2010 को नक्सलियों ने वो हमला बस्तर के दंतेवाड़ा इलाके में किया था। दंतेवाड़ा जिले के ताड़मटेला नामक जगह पर एंबुश लगाकर 150 जवानों को निशाने पर लिया था। 2010 में हुई वो घटना सीआरपीएफ जवानों पर नक्लसियों द्वारा किया गया अब तक का सबसे बड़ा नक्सल हमला कहलाता है ।
इस तरह किया गया था हमला
6 अप्रैल की सुबह CRPF के करीब 150 जवान जो सर्च ऑपरेशन के लिए निकले थे। अमूमन सर्चिंग पर गए जवान वापस लौटते वक्त थके हुए होते हैं। इसी थकान का फायदा उठाते हुए करीब 1000 नक्सलियों ने योजनाबद्ध रणनीति से जवानों पर निशाना लगा दिया था। आराम करने वाली जगह पर एंबुश लगा हुआ था। जैसे ही जवान आराम करने वाली जगह पर पहुंचे तभी नक्सलियों ने धमाका कर दिया। जवान कुछ समझ पाते उसी दौरान नक्सली अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। घंटों तक चली मुठभेड़ में 76 जवान शहीद हुए थे।।जबकि 3 अन्य जवान अस्पताल में इलाज के दौरान शहीद हो गए थे।। वही बताया जाता है कि नक्सलियों से घिरे जवानों की जवाबी कारवाही में सिर्फ 8/10 नक्सली मारे गए थे। जबकि उनके घायलों की संख्या भी करीब 25 की रही थी।। इस हमले के बाद नक्सलियों ने शहीद जवानों के यूनिफार्म, हथियार और जूते भी लूट लिए थे। घटना के कुछ दिन बाद ही लुटे गए हथियारों के साँथ नक्सलियों ने एक वीडियो वायरल किया था।
सालों बाद भी कई बड़े नक्सली हमले होते रहे,हर हमलो में जवानो की जान देकर देश ने बड़ी कीमत चुकाई पर गलत रणनीति और असफल सूचना तंत्र के लिए दोषी ठहराए गए अफसरों पर कभी कोई कार्यवाही नही की गई।। उलट उन्हें सुरक्षित जगहों पर प्रमोशन का लाभ दे दिया गया।। परिणाम स्वरूप 22 मार्च 2020 को भी एक बड़ा नक्सल हमला हुआ जिसमें 17 जवान शहीद हो गए।। यहां भी जवानो के ऑपरेशनल ट्रुप बिना किसी बड़े अधिकारी को भरोसे में लिए बिना किस योजना के सिर्फ नक्सलियों के एक जगह जमा होने की सूचना पर उतार दिया गया।। 6 अप्रैल वर्ष 2010 से लेकर 22 मार्च 2020 तक बस्तर क्षेत्र में तैनात केंद्रीय सुरक्षा बलों और राज्य पुलिस बलों के बीच आपसी सामंजस और तालमेल न होने की जानकारी सामने आई।।परिणाम सामने आया।। उस बार की तरह इस हमले की असफल रणनीति की जवाबदेही बड़े अधिकारियों पर तय नही की गई।।जांच के नाम का झुनझुना बजाया गया।। इधर नक्सली इस हमले के बाद भी 15 ak 47 और 2 यूबीजीएल जैसे घातक हथियार लूटने में सफल रहे।।
बकौल जवानो के द्वारा नक्सलियों पर किये गए तमाम सफल हमलों के बाद नक्सली खुद को और अधिक मजबूती से पेश करते रहे,उन्होंने अपनी रणनीतियों में बड़ी तेजी से आश्चर्यजनक बदलाव लाए जबकि पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबल के रणनीतिकारों ने अपना पुराना ढर्रा अपनाए रखा।
ताड़मेटला घटना के बाद देश की नाराज जनता की प्रतिक्रियाओं को देखते हुए तत्कालीन सरकारों ने जांच कमिटी के गठन तो किया
लेकिन मुख्य जांच अधिकारी ने प्रारम्भिक जांच रिपोर्ट में ही कह दिया था कि रमेश चंद्रा नामक अधिकारी जिन्होंने 1 अप्रैल 2010 को एक ऐसे आपरेशन को करने की इजाजत दी थी।। जिसका कोई भी तुक नही था।राममोहन कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि जिस डिप्टी कमांडेंट को इस टीम का नेतृत्व करने की इजाजत दी गई वो पूरे इलाके से अनभिज्ञ था और उसे केवल ट्रूप के आउट स्टेशन मूवमेंट की निगरानी करने के लिए लाया गया था। हालाकि 6 अप्रैल 2010 को दंतेवाड़ा के ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत की जांच रिपोर्ट में इंटलीजेंस फेलुवर को भी बड़ा कारण बताया गया था।। लेकिन अफ़सोस कि माओवादियों द्वारा किये गए उस हमले के बाद की गई कोर्ट आफ इन्क्वायरी में आइपीएस अधिकारियों को लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया तो इन्क्वायरी के नतीजों के आधार पर उनके विरुद्ध दंडात्मक कारवाही करने की जगह,दूसरी कोर्ट आफ इन्क्वायरी सेटअप कर दी गई, जिसमें आरोपी बच निकले। कोर्ट आफ इन्क्वायरी करने वाले सीआरपीएफ के पूर्व डीजी डीसी डे ने तो तब मीडिया से साफ शब्दों में कहा था कि अगर परिस्थितियों का सही ढंग से मूल्यांकन किया जाता तो ताड़मेटला की घटना घटती ही नही। सीआरपीएफ द्वारा की गई कोर्ट आफ इन्क्वायरी में इस हमले में चार अफसरों को लापरवाही बरतने का दोषी पाया गया था। गौरतलब है कि इस हमले के बाद बी एस एफ के पूर्व डी.जी. राममोहन की अध्यक्षता में एक कमीशन भी बनाया गया था,जिसमें भी गम्भीर लापरवाही की बातें सामने आई थीं।
जिन अफसरों ने जानलेवा लापरवाही की थी उन्हें बाद में बेहतर पोस्टिंग मिल गई थी।।
ताड़मेटला काण्ड में कमीशन की जांच रिपोर्ट में कहा गया कि यह आश्चयर्जनक है कि सीआरपीएफ का वायरलेस सेट माओवादियों के पास कैसे पहुंच गया और उन्होंने उसकी मदद से इस भयावह हत्याकांड को अंजाम दे दिया।
गौरतलब है कि पूरे देश को दहला देने वाले इस मामले में तत्कालीन आईजी रमेश चंद्रा, डीआइजी नलिन प्रभात 62 बटालियन के कमांडेंट ए के बिष्ट और इंस्पेक्टर संजीव बांगडे पर लापरवाही के आरोप लगे थे।
रिपोर्ट में कहा गया कि यह पहली गलती थी आश्चर्यजनक यह था कि जिस रास्ते से जवान निकले उसे पहले से सेनीटाइज कर लेना चाहिए था। परन्तु ऐसा किया नही गया।। जांच रिपोर्ट में लोकल पुलिस से तालमेल का अभाव तथा जानबूझकर कर गोपनीय सूचना उपलब्ध न कराए जाने की बातें भी कही गई थी।।