बहस मत कीजिये हो सके तो घटना क्रम को समझिये..आप दोषी/आरोपी है या नही ये अदालत नही नेता और पुलिस तय करते हैं-नितिन सिंन्हा

अदालत के फैसले आते तक आपकी दर्जनों बार चरित्र और सामाजिक हत्या की जा चुकी होती है…
बात 2015 अप्रैल 30अप्रेल की है एक फ़र्ज़ी मामले में मेरी गिरफ्तारी बीमारी के हालत में सिर्फ इसलिए होती है,कि पुलिस को मालूम होता है कि उसकी बनाई फ़र्ज़ी कहानी माननीय उच्च न्यायालय के समझ मे आ गई है।। मेरी पिटीशन पर सुनवाई के बाद न्यायपालिका से उक्त फ़र्ज़ी fir से मेरा नाम हटाए जाने की प्रबल सम्भावना थी । आने वाले समय में मेरे इस तरह छूट जाने से पुलिस के कुछ अधिकारियों की परेशानियां बढ़ने वाली थी। अतः मुझे गिरफ्तार कर लिया गया,चुकि प्रकरण में न्यायपालिका के हस्तक्षेप के बाद नया मोड़ आ गया था अतः इस हालत में विरोध की कोई सम्भवना नही थी। फिर भी उस स्थान से लाने वाला एक asi ने बीच जंगल में लोड माउजर निकाल कर कहा, सिन्हा तुम भाग सकते तो भाग जाओ मुझे तुम्हे गोली मारने का आदेश मिला है।। मेरी किडनी में इंफेक्शन होने के कारण पैर में बड़ी सूजन थी।।
हर 20 से 40 मिनट में खून की उल्टी हो रही थी और खांसी भी रुकने का नाम नही ले रही थी अतः भाग जाने की संभावना कतई नही थी।। मुझे मारने के बाद शायद पोस्टमार्टम रिपॉर्ट में सब बातें सामने आ भी जाती। अतः मेरा एनकाउंटर नही किया जा सका।।
उस वक्त गाड़ी में मेरे अलावा 4 पुलिस कर्मी सवार थे।। तीन बार धमकी के बाद भी मैं गाड़ी से नही उतरा। इससे पहले वर्ष 2010-11 में मेरी एक खबर “बिना त्रिपाल लगी ट्रेलरों में किसका ओवर लोड कोयला..” से तत्कालीन बड़े साहब नाराज हो गये थे। मुझे सबक सिखाने के लिहाज से जोड़-तोड़ में लग गए कुछ दुश्मन दोस्तों ने बखूबी उनका साथ दिया।। कुछ न मिलने पर बिहार से वर्तमान भाजपा नेता और तत्कालीन शूटर को ही बुला लिया गया।।
ईश्वर की कृपा से शूटर के परिवार पर हमारे दादा श्री की कोई मेहरबानी निकल आई।। पोल खुल गया एक महिने के अज्ञात वास में दिन गुजारने के दौरान स्थानीय थाने में साहब के दबाव में एक फ़र्ज़ी मामला दर्ज किया गया।। मजे की बात यह थी कि उस मामले में मैं खुद पीड़ित और प्रथम शिकायतकर्ता था। परन्तु साहब की नाक के आगे मेरी स्थिति भला क्या मायने रखती थी.?? समय बितता गया इस बीच दो बड़े साहब बदल गए।। दोनों ने प्रकरण को फ़र्ज़ी माना दुबारा जांच के आश्वासन दिया पर किया कुछ नही।। मेरे कलम की धार जस की तस बनी रही मुद्दों पर खबर बनाना जारी रहा।। इसी बीच एक आदिवासी महिला के गैंग रेप और हत्या की घटना में पुलिस की लचर जांच सहित बाल सदन में बाहुबलियों के द्वारा अनाथ लड़कियों के शोषण की घटना प्रकाश में आई।। तत्कालीन सत्ता का संरक्षण प्राप्त बाहुबली आरोपियों को बचाने के लिए मेरी कीमत लगाई गई।। खरीदने के लिए भी कुछ वरिष्ठ पत्रकार साथी समाने आए नही बिकने पर उसी प्रकरण में साहब और नेता जी के दबाव में मुझे मामले से दूर किया गया।।
इधर बाहुबलियों की fir थाने में फाड़ी गई नया fir उन्हें बचाने के लिहाज से दर्ज किया गया।। प्रकरण में बड़े पत्रकार साहब के बताए अनुसार लाखों रुपयों में बड़े साहब उनसे बड़े साहब और नीचे के साहब सहित जांच एजेंसी के लोग खरीदे गए। पूरे प्रकरण में जबर्दस्त लीपा पोती की गई।। प्रकरण से जुड़ा हर आदमी अपनी हैसियत के हिसाब से बिका और खरीदा गया।। फिर 14 महीनों बाद मेरी गिरफ्तारी हुई।। पुलिस और राजनीतिज्ञों के गुणा गणित के बीच ईश्वर की न्याय व्यवस्था चलती रही।। उसने मेरे मामले में संलिप्त लगभग सभी ताकतवर लोगों को अपने होने का बेहतर ढंग से एहसास करा दिया था।।
जेल में करीब 2 महीने गुजारने के बाद आखिरकार मेरी जमानत हुई।। सबसे पहले जेल से छूटने के बाद महज कुछ हफ़्तों बाद न्यायधानी में एक संस्था के द्वारा आयोजित एक सामाजिक कार्यक्रम में मुझे तत्कालीन चीफ जस्टिस साहब के हांथों सम्मानित होने का अवसर मिला।। ईश्वर की कृपा सम्मानीय अतिथियों में प्रकरण से जुड़े पुलिस अधिकारी और नेताजी भी वहां उपस्थित रहे।। कार्यक्रम खत्म होने के बाद आयोजक मंडल और अन्य गणमान्य लोगो के सांथ इत्तेफाक से आजाद हिंद एक्सप्रेस में हम रायगढ़ वापस आए हमारे सांथ स्टेशन पर चीफ जस्टिस मोहदय भी उतरे उन्हें पिक करने वही asi गेट पर दोनों हाँथ जोड़े खड़ा था।। उसने मुझसे भी दुआ सलाम किया।। अपनी बात रखते हुए उस दिन की घटना पर खेद प्रकट किया।। बात आई गई हो गई।। इस बीच बस्तर से लेकर सरगुजा और राजनांदगांव से लेकर जशपुर तक राज्य में पुलिस प्रताड़ना,फेक एनकाउंटर,फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरणों और राज्य के थानों में पुलिस हिरासत में मजबूरों की मौत के दर्जनों मामलों में जानकारी एकत्र की और घटना की खबरें बनाई।।
इस तरह दो साल बीते ही थे कि पुनः मेरे द्वारा सत्ताधारी पार्टी के माफिया पुत्र की दो खबर का प्रकाशन किया गया।। खबरों में वही था जो बताया गया था कहीं कोई व्यक्तिगत दुर्भावना वाली बात नही थी।। परन्तु चुनाव का दौर आ चूका था। टिकट की दौड़ में शामिल नेता पुत्र को हमारी खबर नागवार गुजरी और रहा सहा कसर मीडिया में कुछ हमारे सक्रिय दलालों की चुगली ने पूरी कर दी। इनकी वजह से एक के बाद एक तीन फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण तत्कालीन दम्भी मानसकिता के बड़े साहब के निर्देश पर कथित ईमानदार थाना प्रभारियों और पुलिस वालों की कृपा से बनाए षड्यंत्र कर बनाए गए। इस बार भी हर सम्भव प्रयास किया गया कि किसी तरह हमें जेल भेजा जाए और वहां अपने हिसाब से हमे प्रताड़ित किया जाना था ।। ताकि चुनाव काल में षड्यंत्रकारियों को विघ्न न पहुंचे।। यातना का यह दौर ऐसा था कि हम अपने छोटे भाई जैसे एक सहयोगी मित्र को खोते-खोते रह गए।।
पुनः ईश्वर की कृपा और उसकी न्याय व्यवस्था ने अपना काम किया।
आज आपके बीच हूँ मुद्दों पर लिखता हूँ।। कोशिश होती है बिना लाग लपेट बिना मखन पालिश के वही लिखा जाए जो सही है।। यह जानते हुए कि आज भी खतरा बराबर बना हुआ है।। फिर भी चाटुकारिता और बेईमानी नही सीखी।। जो भी बोला या लिखा निडरता और निष्पक्षता को ध्यान में रखकर लिखा।।
अतःमुझसे बेहतर पुलिस का रक्त चरित्र कौन समझ सकता है.??
अब अगर लोकतंत्र को बचाना है तो इस निरंकुश दानव(दूषित पुलिस व्यवस्था) पर संवैधानिक नियंत्रण जरूरी है।। क्योंकि बिना लगाम का घोड़ा और बिना जवाबदेही का अधिकार समाज को बहुत अधिक क्षति पहुंचा सकते हैं।।