रायगढ़

त्रिपक्षीय वार्ता में भी नही बनी बात..। ट्रांसपोर्टर आर्थिक नाकेबंदी की तैयारी में..।।

सिंघघोष/रायगढ़- जिले में स्थापित उद्योगों के लिए आवश्यक माल- ढुलाई करने वाले जिले के तमाम ट्रांस्पोटर बीते दो दिन से सड़क पर उतर कर उद्योग प्रबन्धनों के विरुद्ध नाराजगी जाहिर कर रहे है। उनका कहना है कि बार-बार उनके अनुनय-विनय के बाद भी जिले के हठधर्मी उद्योग प्रबन्धन उनकी बात नही सुन रहा है। यह जानते हुए भी कि डीजल के दाम और टैक्स का भार बढ़ने से पुराने भाड़े पर वाहन चलाने से जिले के ट्रांस्पोटर बड़ा आर्थिक नुकसान झेल रहे हैं। उद्योग प्रबन्धन के द्वारा वाहन भाड़ा नही बढ़ाए जाने के कारण अधिकांश ट्रांस्पोटरों की माली हालत काफी बिगड़ गई है। कर्ज में दबे कई ट्रांस्पोटर आत्महत्या करनें का मन बला लिए हैं।

मामले को लेकर विस्तार से चर्चा करते हुए ट्रांस्पोटर अशोक अग्रवाल ने बताया कि जिस तरह से बीते दिनों में देश मे डीजल पेट्रोल के दाम बढ़े है और सरकार ने भी वाहनों पर लगने वाले टैक्स को लगभग दोगुना बढ़ाया है उसे देखते हुए जिले में स्थापित तमाम छोटे-बड़े उद्योग प्रबन्धनों को वाहन का भाड़ा स्वत: ही बढ़ा देना था। उन्होंने नही बढाया हम लगातार उनसे निवेदन करते रहे कि पुरानी दर से मिलने वाले भाड़े में आज माल ढुलाई कर पाना सम्भव नही हैं। ऊपर से कम्पनी प्रबन्धन के लोगों ने झूठे प्रलोभन देकर कुछ लोगो को जमीन जायदात यहां तक कि घर के गहने बेचवा कर ट्रकें खरीदवा दी। उनसे कहा गया कि एक वाहन से आप कम से कम 30 से 50 हजार रु महीना कमाओगे ऐसा कहकर उन्हें ट्रांसपोर्ट लाइन में ले आये ताकि कम्पनी की माल ढुलाई न रुके। परन्तु आज हालात बिलकुल उलट होने के कारण हम ट्रांसपोर्टर रोजाना कर्ज के बोझ में दबते चले जा रहे है। वाहन पर लगने वाला टैक्स,टूल एंड पार्ट्स,
डिपरिशिएषन,मेंटनेंस,बीमा और सबसे महत्वपूर्ण उसमें भरे जाने वाले ईंधन डीजल की कीमत आज आसमान छू रही है। इसके बाद भी अगर उद्योग प्रबन्धन उन्हें पुरानी दर से भाड़ा दे वो भी महीनो लटका-लटका कर ये कतई उचित नही है।

वही कोल ट्रांसपोर्टर अनूप बंसल कहना है कि हम ट्रांस्पोटर शुरू से ही विवाद नही चाहते थे,हमने अपनी बात कई बार प्रबन्धन के सामने रखी। परन्तु उनकी तरफ से यथोचित प्रतिक्रिया नही आने के बाद हमने आंदोलन का रास्ता पकड़ा। इसी बीच जिला प्रशासन ने अच्छी पहल करते हुए त्रिपक्षीय वार्ता रखी जिंसमे जिद्दी उद्योग प्रबन्धन बात मानने को राजी नही हुआ। अतः हम सब बड़ा आंदोलन जिसे आप आर्थिक नाकेबन्दी कह सकते है वो करने की तैयारी में है। यह नाकेबंदी तब तक चलेगी जब तक उद्योग प्रबन्धन हमारी मांगो को मान नही लेता है।

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