सारंगढ़ : राजनीति ने न्याय को पछाड़ा

नगर पालिका एक, नियम एक कार्रवाई अलग क्यों? पूछता है सारंगढ़
नगरपालिका उपाध्यक्ष समेत 07 कांग्रेसी पार्षदों पर प्रशासनिक कार्रवाई से उठ रहा सवाल !
सारंगढ़ : सत्ता बदलते ही राजनैतिक हवा कैसे बदलती है इसका जीता-जागता उदाहरण सारंगढ़ मे देखने को मिल रहा है जब नगरपालिका उपाध्यक्ष समेत 07 कांग्रेसी पार्षदों को प्रशासन द्वारा दोषी करार देते हुए पद से विमुक्त करने की सूचना ने सारंगढ़ वासियों को चर्चा का माहौल गर्म कर दिया है।
सारंगढ़ मे जनता की माने तो नगरपालिका पार्षदों की लोकप्रियता उनकी सबसे बड़ी कमजोरी बन गयी!
सारंगढ़ नगर पालिका में एक बार फिर राजनीति ने न्याय को पछाड़ दिया? वर्षों से ईमानदारी और निष्ठा से कार्य कर रहे कांग्रेस के पदाधिकारी इस बार कार्यवाही की जद में आ गए, जबकि अतीत में इससे भी बड़े मामले दबा दिए गए। बताया जा रहा है कि नगर पालिका की एक भूमि के मामले में कार्यवाही की गई, जिसे नियमों के अनुसार पीआईसी (स्थायी समिति) की बैठक में पास किया गया था।
जिसको प्रशासन ने न्याय विररुद्ध कार्रवाई का नाम देकर जनप्रतिनिधियों को पद से बेदखल करने की कार्रवाई की है, लेकिन इसी प्रकार का दर्जनों प्रकरण पूर्व में भाजपा शासनकाल के दौरान भी हुआ था, जब प्रशासक नियुक्त थे। उस समय भाजपा से जुड़े पदाधिकारियों ने भी पालिका की भूमि को नियमों को ताक पर रखकर अपने ही लोगों को बेच दिया था, लेकिन तब न कोई जांच हुई, न किसी पर कार्यवाही! आखिर क्यों?
जबकि तब भी उसी तरह की कार्रवाई भाजपा के नगरपालिका अध्यक्षो और पार्षदों द्वारा की गई थी तब वो न्याय संगत था अब जबकि कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्षद हैँ तो उसी प्रकार के प्रकरण मे इन्हे दोषी साबित कर कठोर कार्रवाई की जा रही है आखिर क्यों? जबकि वही पालिका, वही नियम-कानून, फिर यह दोहरा मापदंड क्यों, यह सवाल आज सारंगढ़ की जनता और कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मन में उठ रहा है।
स्थानीय लोगों और सामाजिक संगठनों का कहना है कि यदि पालिका की संपत्तियों की बिक्री या उपयोग में अनियमितता है तो फिर सभी पुराने और वर्तमान मामलों की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। केवल एक पक्ष विशेष को निशाना बनाना राजनीति से प्रेरित कदम है।
सूत्रों की माने तो अविभाजित मध्यप्रदेश का हिस्सा रहे सारंगढ़ मे भी उसी तरह पीआईसी मे निर्णय लिया गया था जैसे अभी वर्तमान मे कांग्रेस के पार्षदों द्वारा लिया गया है।
अगर कोई दोषी साबित हो तो उनपर कार्रवाई लाज़मी है परन्तु अगर कोई एक्शन हो तो सभी दोषियों पर समान रूप से कार्यवाही होनी चाहिए ताकि प्रशासन की विश्वसनीयता बनी रहे। अब देखना होगा कि शासन इस मसले पर कितना न्यायसंगत रवैया अपनाता है।
प्रशासनिक कार्रवाई पर उठ रहा सवाल !
जनप्रतिनिधि जनता के चुने सदस्य होते हैँ जिनका उद्देश्य आम जनता कर हित मे कार्य करना होता है, हो सकता है उनको नियम कानून की उतनी जानकारी नही होती जैसे शासन के कर्मचारियों को होती है इसलिए सरकार चाहे ग्राम पंचायत हो नगरपंचायत हो नगरपालिका अपने सरकारी कर्मचारियों को प्रतिनिधि नियुक्त करती है प्रति बकायदा प्रति माह सरकारी वेतन प्राप्त होती है। जैसे पंचायत मे सचिव और नगरपालिका मे सीएमओ जिसे मुख्य कार्यपालीन अधिकारी कहा जाता है की नियुक्ति होती है।
उक्त सरकारी मुलाजिमो को पंचायत और नगरपालिका की कार्यविधि नियमो की सम्पूर्ण जानकारी होती है।
जनप्रतिनिधि कोई कार्य या प्रस्ताव पारित करते हैँ तो उपरोक्त प्रस्ताव उचित है या अनुचित इसकी समस्त जानकारी सीएमओ की होती जब क्योंकि सरकार उन्हे इसी कार्य हेतु नियुमत करता है, ये अधिकारी समय समय मे बैठक कर माध्यम से नव नियुक्त जनप्रतिनिधियों को नियमावली की जानकारी भी देते रहते हैँ।
सन 2022 को पदभार ग्रहण करने वाले कांग्रेसी जन प्रतिनिधियों द्वारा प्राप्त आवेदन पर आबंटन हेतु नियमों की जानकारी हो ना हो लेकिन इतने बड़े जिम्मेदार पद पर कार्यरत सीएमओ साहब को तो पूर्ण जानकारी होगी। क्योंकि अक्सर कोई जनप्रतिनिधि किसी आवेदन को प्राप्त करता है तो यह देख्ग्ता है कि पिछले कार्यकाल मे पूर्व पीआईसी सदड़्यों और सीएमओ द्वारा ऐसे ही प्रकरण मे क्या विधि अपनाई गई थी उसी को आधार मानकर कोई भी प्रस्ताव पारित करेगा। लेकिन अगर प्रस्ताव गलत हो तो सीएमओ द्वारा विधिवत जानकारी सदस्यों को देना अनिवार्य होता है।
इस मुद्दे पर जिस तरह पीआईसी के सदस्यों पर कार्रवाई की गयी है जनता के मन मे सवाल उठना कोई अति संयोक्ति नही है। क्योंकि जनप्रतिनिधियों का मुख्य उद्देश्य जनता कर हित मे निर्णय और राजस्व आय मे वृद्धि की हो सकती है! इसलिए सारंगढ़ नगर पालिका में कांग्रेस से जुड़े पदाधिकारी पर की गई हालिया कार्रवाई को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
भाजपा शासनकाल में भी हुआ था नियम विरुद्ध कार्य? कार्रवाई क्यों नही?
सूत्रों कि माने तो पूर्व में भाजपा शासन के दौरान, जब नगर पालिका में भाजपा और प्रशासक नियुक्त थे, तब भी इसी प्रकार का मामला सामने आया था। उस समय भी पालिका कि कीमती जमीन को नियमों की अनदेखी कर अपने नजदीकी लोगों को आबंटित किया गया था। लेकिन आश्चर्यजनक रूप से न उस वक्त जांच हुई, न ही किसी पर कोई कार्रवाई की गई।
पूर्व अध्यक्षों द्वारा भी दी गई थी स्वीकृति-
प्रकरण 01-
पूर्व अध्यक्ष अजय गोपाल ने 07 नवंबर 2009 को प्रस्ताव क्रमांक 598 मे कृष्ण कुमार निषाद को खाड़ाबन्द के नीचे मूत्रालय के बगल मे 8×8 फ़ीट जमीन को दुकान निर्माण हेतु लीज़ मे दिया था। महज 300 ₹ किराये पर ।
प्रकरण 02
अजय किशोर लकड़ा जो प्रशासक नगर पंचायत ने दिनांक 17 जून 2011 को प्रस्ताव क्रमाक 118 मे प्रस्ताव पारित कर बस स्टैंड होटल नंबर 02 और 03 के पीछे के पीछे 400 वर्गफ़ीट रिक्त भूमि को श्री राजेंद्र सिंह ठाकुर को 597 रुपये मादिक किराये पर लीज पर स्वीकृत किया था।
प्रकरण 03
चम्पा ईश्वर देवांगन द्वारा बकायदा मोहन लाल केशरवानी को बस स्टैंड स्थित दुकान क्रमांक 04 के पीछे रिक्त भूमि को 10×12 फ़ीट जमीन को 50 हज़ार जमा कर लीज़ मे दी गयी थी। चम्पा ईश्वर देवांगन द्वारा ही सन 2016 मे मधुसूदन बानी को उनके मकान के पीछे तालाब पार उत्तरी छोर मे 10×41 वर्ग फ़ीट जमीन को महज 02 रुपये प्रति वर्ग फ़ीट के दर से लीज़ पर दिया गया था।
प्रकरण 04
अध्यक्ष राजेश्वरी केशरवानी द्वारा सन 2000 मे उयेन्द्र देवांगन को प्रस्ताव क्रमांक 05 के प्रकरण के तहत नगरपंचायत गोदाम के पीछे बिलासपुर रोड मे 15×09 फ़ीट का अस्थाई प्लॉट 200 रु प्रतिमाह मे फे दिया गया था।
अवगत हो कि जिस प्रकरण हेतु वर्तमान अध्यक्ष और पार्षदों को दोषी मानकर कार्रवाई की जा रही है, वैसे ही आबंटन पूर्व मे भी किया गया है तो सिर्फ एक दोषी क्यों? क्या अन्य पक्ष पर भी कार्रवाई होगी?
क्योंकि जैसा कार्य विगत सालों से नगरपालिका अध्यक्षो और सीएमओ द्वारा किया गया था उसी की पुनरावृत्ती उन्ही के तर्ज़ पर वर्तमान कांग्रेस के अध्यक्ष और पार्षदों द्वारा की गई है।
अगर वर्तमान कार्यप्रणाली सही नही था तो पूर्व कार्यप्रणाली भी गलत था तो एक पर कार्रवाई और अन्य को अभ्यदान क्यों?
क्या सारंगढ़ मे पार्टी देखकर बदलते हैँ नियम ?
जनता अब खुले आवाज़ मे कह रही है कि जब वही नगर पालिका है, वही नियम हैं, लेकिन कार्रवाई सिर्फ एक पक्ष विशेष पर ही क्यों? कांग्रेस कार्यकर्ताओं और शहरवासियों का आरोप है कि यह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित कार्रवाई है, जो निष्पक्षता की कसौटी पर खरी नहीं उतरती।
सभी मामलों की हो निष्पक्ष जांच :
स्थानीय नागरिकों, सामाजिक संगठनों और कई जनप्रतिनिधियों का कहना है कि यदि पालिका की संपत्ति की बिक्री में अनियमितता है, तो फिर सभी पुराने और वर्तमान मामलों की निष्पक्ष जांच कराई जानी चाहिए। केवल चुनिंदा लोगों पर कार्यवाही कर बाकी दोषियों को बचाना जनता के साथ अन्याय है।
प्रशासन की साख दांव पर
एक ओर कांग्रेसी पार्षदों और उपाध्यक्ष पर कार्रवाई और भाजपा के पूर्व सभापति और अध्यक्षों पर अभ्यदान से जनता के मन मे सवाल उठ रहा है की क्या ये कार्रवाई सही है या गलत।
क्योंकि अगर वर्तमान पीआईसी ने नियम विरुद्ध आबंटन किया है तो पूर्व मे भी ऐसे ही दर्जनों प्रकरण संज्ञान मे हैँ, क्या सभी दोषियों पर समान कार्यवाही होगी, या यह कार्रवाई सिर्फ एक राजनीतिक हथियार बनकर रह जाएगी? नगर पालिका की आड़ में चल रही सियासत ने एक बार फिर निष्पक्ष प्रशासन पर सवालिया निशान खड़ा कर दिया है। अब जरूरी है कि सच्चाई सबके सामने आए ओ भी बिना राजनीतिक चश्मे के। क्या प्रशासन जनता के मन मे उठ रहे सवालो का न्यायपूर्ण जवाब दे पाएगी ,देखना लाज़मी होगा।
कांग्रेस की लोकप्रियता से भाजपा भयभीत – अरुण मालाकार
कांग्रेस के पूर्व जिला अध्यक्ष अरुण मालाकार ने प्रशासनिक कार्रवाई को सीधा सीधा भाजपा के दबाव पर प्रशासनिक करवाई करार दिया है। श्री मालाकार ने उक्त कार्रवाई को सरासर गलत बताते हुए कहा कि नगर पालिका मन आदिवासी उपाध्यक्ष रामनाथ सिदार सहित प्रेसिडेंट इन कौंसिल के 7 पार्षद को भूमि आबंटन मामले में जबरन भाजपा द्वारा षडयंत्र पूर्वक कांग्रेस पार्षदो के ऊपर कार्यवाही कराया जा रहा है।
भाजपा का सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले में जनाधार शून्य हो गया है। सारंगढ़ में कांग्रेस के कार्यकाल में जिस तरह की विकास हुई है उसे भाजपा पचा नही पा रही है। जैसा भूमि आबंटन अभी किया गया है वो निर्णय पी.आई. सी. का निर्णय था जिसे सीएमओ ने पास किया था ऐसा ही निर्णय विगत प्रत्येक अध्यक्ष और सीएमओ करते आ रहे हैँ, जबकि वर्तमान आबाँटन की राशि भी नगर पालिका निधि मे जमा की जा चुकी है, अगर कांग्रेसियों पर कार्रवाई होगी तो भाजपा के जनप्रतिनिधियों पर भी कड़ी कार्रवाई हो क्योंकि नियम सबके लिए बराबर होता है।
सारंगढ़ अपर कलेक्टर ने भाजपा के इशारे में सारंगढ़ नगर पालिका के उपाध्यक्ष रामनाथ सिदार, पार्षद कमला किशोर निराला,गीता महेंद्र थवाईत,सरिता शंकर चन्द्रा,संजीता सिंह,शुभम बाजपेयी एवं शांति लक्ष्मण मालाकार को पार्षद पद से पृथक करके सारंगढ़ की जनता का अपमान किया है। जो बहुत ही निदनीय है। रामनाथ सिदार एक आदिवासी समाज से है। भाजपा आदिवासियो को प्रताड़ित करना बंद करें।
जिला अध्यक्ष ताराचंद देवांगन ने भी कार्रवाई पर उठाया सवाल –
जिला अध्यक्ष देवांगन ने मीडिया को बताया कि जमीन आबंटन एवं कम दर पर क्रय विक्रय करने की अधिकार कलेक्टर को है।जमीन आबंटन नगर पंचायत व नगर पालिका में सी एम ओ द्वारा आबंटन किया जाता है। अगर कोई प्रस्ताव करते भी हैं तो उसे संबंधित विभागीय अधिकारी संज्ञान लेते हैं हस्ताक्षर करते हैं उसके बाद ही वह पारित होता है क्या पार्षदों को अपने बात रखने का मौका मिला है
फिर पार्षद के ऊपर साजिश के साथ झूठे आरोप लगा कर पृथक करना अन्याय है। कहीं ना कहीं जनता ने पार्षदों पर विश्वास करके मतदान किया था एक प्रकार से जनता के अधिकार का हनन हो रहा है क्या भविष्य में जनता मतदान करने जाएगी शासन प्रशासन के इस रवैया से मतदान प्रतिशत भी कम होगा यह एक हिटलर शाही तानाशाही रवैया की ओर इशारा करता है।