संपादकीय

सैया भए कोतवाल,तो डर कहेका…।।नींद की दवाएं खाये सो रहा पर्यावरण विभाग…।।”फ्लाई एस की कालिख खेतों मे डले, प्लांटो की esp चले-न चले,पेड़ो की हो भरपूर कटाई,हमें तो प्यारी हैं नोटों की रजाई”

सीधी बात नो बकवास-नवरतन शर्मा (सम्पादक)

सिंहघोष/रायगढ़-06.02.22-
शायद कुछ इसी तर्ज पर जिला पर्यावरण विभाग गहरी नींद में सो रहा है उसे प्लांटो से निकलने वाले हजारों टन “फ्लाई एस” के निपटान की नियमावली,जगह से ना कुछ सरोकार है और ना ही जानकारी लेने की गरज। जिसका कारण आमजन को समझाने की हम भी कोशिश क्यों करें।
प्लांट से निकले “एस” की मात्रा व जगह(जहाँ डलना हैं) कि जानकारी तो पर्चियों में लिखा जरूर होता है लेकिन ट्रांसपोर्टर अपने भाड़ा बचाने के लिए उसे बीच रास्ते मे ही किसी खाली जगह पर खालीकर अपने काम से इतिश्री कर लेते है। ऐसे किसी कृत्य की जब जानकारी पर्यावरण विभाग के साहब को देने आप अपनी जागरूकता दिखायँगे कसम से आपको उसके दो सवालो का जवाब देना होगा 1-किस प्लांट का माल हैं?
2-गाड़ी किसकी है ?
बताओ ये विभाग के कर्मचारी,अधिकारी सरकार से मोटी तनख्वाह,सुविधाएं क्या सिर्फ कुर्सी तोड़ने की लेते हैं ? सवालों के जवाब देने के बावजूद आप ये न सोचें कि आपकी वैतरणी पार हो गई हैं पर बन्धु अभी आपको पिछले सात जन्मों के पापों का हिसाब भी तो देना है। जैसे- आप कौन?,आपको क्या मतलब ?, कानून क्यों लगा रहे हो ? व अभी पता करवाता हुँ फिर देखता हूं कि क्या कर सकता हूं ?
इस बीच गाड़ी माल खाली भी कर अपनी नई भर्ती के लिए वापिस प्लांट की ओर चली भी गई। इतनी सब बातों के बाद भी जागरूक आदमी की जागरूकता बरकरार रहती है और वह इस मुगालते में उसी जगह टिके और टिकाये रहता है कि गाड़ी दोबारा आयेगी और साहब कार्यवाही करेंगे।
तो हे वागड़ू तुझे अब तक ये समझ नही आया कि साहब ने मैनेजमेंट को फोन कर बता दिया होगा कि शिकायत आई हैं रूट बदल लो।कुल मिलाकर सार ये है कि अब ये दो-तीन साल के लिए अधिकारी बनकर आये हमारे शहर की आबोहवा का फैसला करेंगे और हम उसे सिरमाथे में बैठा जी सर, जी सर करेंगे। क्योंकि सँघर्ष करना तो विकास विरोधी कहलाना है और उनके लिए संघर्ष करना जिनको अपने मुवावजे की रकम में इजाफा या अपनी मासिक आय में बढ़ोतरी करनी है। बजाए इसके ये काले जहर का तमाशा आप भी देखो और हम भी।।

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