
राज्य में अविलंब पुलिस सुधार लागू करने और आंदोलन के दौरान बनाए गए फ़र्ज़ी प्रकरणों की वापसी को लेकर मुखिया से मिलना चाहते है,रोहणी..
सिंहघोष/बिलासपुर:-दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की तमाम राजनीतिक पार्टीयो और ब्यूरोकेट्स का अव्यवहारिक आचरण किसी से छुपा नही है।। सत्ता में आने के लिए राजनीतिक पार्टियां क्या कुछ नही करती है।विपक्ष में रहते हुए तत्कालीन सरकार के विरुद्ध विभिन्न मुद्दों को समर्थन देते हुए,अपनी पार्टी की सरकार बनने पर सभी मागों को अक्षरशः लागू करने का वायदा भी राजनीतिक चरित्र का हिस्सा है।।
कमोबेश राज्य की कांग्रेस सरकार ने भी तब के पुलिस आंदोलन और उससे जुड़े पुलिस परिवार के लोगो के सांथ ऐसा ही कुछ किया है।
पुलिस आंदोलन के समय प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने पुलिस परिवार का न केवल प्रत्यक्ष बल्कि भावनात्मक रूप से भी समर्थन किया था। चुकी पुलिस परिवार का अपना एक बड़ा वोट बैंक है इस लिहाज से विपक्ष को उसके समर्थन का प्रतिफल भी मिलना था और वह मिला भी,परन्तु सत्ता में आने के बाद कांग्रेस की वर्तमान भूपेश सरकार ने पार्टी हित कर तमाम कार्यों को अल्पकाल में प्राथमिकता से पूरा किया परन्तु जिन दो महत्वपूर्ण वायदों पर उसे बड़ा समर्थन मिला था। जिससे राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस पार्टी को सरकार बनाने में सफलता मिली थी।हालांकि सरकार बनने के बाद पुलिस सुधार ले थोड़े बहुत प्रयास किये गए परन्तु सरकार और पुलिस परिवार के बीच किसी अज्ञात सलाहकार ने पुलिस सुधार को लेकर किसी शातिर बनिये की तरह नाप तौल करने में लगा है।
जबकि सत्ता में आये कांग्रेस पार्टी को करीब दो साल होने को है,परन्तु सरकारी प्रतिबद्धता के अभाव में तत्कालीन वायदों के अनुरूप पहले विधानसभा सत्र में ही पुलिस सुधार और पत्रकार सुरक्षा कानून आज भी अमल में आने की बाट जोह रहा है।
आपको शायद उस सीधी-सादी ग्रामीण महिला की मार्मिक अपील याद हो…
“हमर पहिले के मुख्यमंत्री हर तो परदेसिया रहिस,लेकिन अभी के हमर मुख्यमंत्री तो छतीसगड़िया है ओकर बावजूद भी कुछ नही करत हे”
बात इस वर्ष मार्च महीने की है जब बिलासपुर निवासी बर्खास्त पुलिस आरक्षक रोहणी कुमार लुनिया ने राज्य में पुलिस परिवार बदहाली को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार के चुनावी वायदे पुलिस सुधार को अविलंब लागू किये जाने की मांग को लेकर करीब 10 दिन का आमरण अनशन किया था। तब उनकी बिगड़ती तबियत और राज्य सरकार और पुलिस विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के द्वारा उनकी सुध न लेने पर बुरी तरह से व्यथित ग्रामीण परिवेश की सीधी-सादी उक्त महिला अर्थात आरक्षक रोहणी उर्फ मनीष कुमार लुनिया की धर्मपत्नि का एक वायरल वीडियो सन्देश(अपील) ने हर किसी को झकझोर कर रख दिया था।। सम्भवतः तब देश और राज्य में कोरोना संक्रमण का पहला चरण चल रहा था। सरकार दूसरे प्रदेशों में रह रहे मजदूरों के हालात और राज्य में कोरोना संक्रमण के संभावित खतरों के रोक थाम की व्यवस्था में उलझी हुई थी। इस समय अपनी मांग को लेकर जान दांव पर लगाने वाले बर्खास्त आरक्षक का अनशन एन केन प्रकारेण तुड़वाया गया।। जिसमें उनकी मांगों को गम्भीरता से विचार करने के अलावा लाकडाउन के बाद पुलिस सुधार प्रक्रिया में तेजी लाए जाने का आश्वासन दिया गया था। आज पूरे देश और प्रदेश में अनलॉक 2/3 लागू हो चुका है ज्यादतर सरकारी कार्यालयों में काम काज भी शुरू हो चुका है इसके बावजूद राज्य में न तो पुलिस सुधार लागू किए जाने की स्थिति बन पाई है न ही पुलिस आंदोलन के दौरान तत्कालीन भाजपा सरकार के इशारे पर पुलिस परिवार के विरुद्ध बनाये गए फ़र्ज़ी पुलिस प्रकरण वापस लिए गए है।। इस कारण आन्दोलन से जुड़ा हुआ पुलिस परिवार खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है।
इन्ही कारणों से बर्खास्त आरक्षक रोहणी कुमार लुनिया उर्फ मनीष ने पुनः सोशल मीडिया में एक नया वीडियो सन्देश वायरल कर राज्य के मुखिया भूपेश बघेल से मिलने की मांग की है,ताकि वो अपना दर्द बिना किसी बिचौलिए के सीधे मुखिया के समक्ष रख पाएं। मनीष कहते है कि अनशन के बाद उनकी सेवा बहाली तो हो गई है परन्तु उन्हें वर्क विथाउट पे वर्ग में रखा गया है उनके अलावा बाकी किसी साथियों की बहाली भी नही हुई है। न ही उनके विरुद्ध बनाये गए पुलिस केस वापस लिए गए हैं। वे इन्ही सब बातों को माननीय मुख्यमंत्री के समक्ष सीधा रखना चाहते है। हालांकि इस दौरान उन्होंने विभिन्न माध्यमों से कई प्रयास किए है,परन्तु उन्हें सफलता नही मिली। हर बार की तरह सिर्फ उन्हें आश्वासन ही दिया गया।अंततः हताश होकर उन्होंने वीडियो सन्देश वायरल किया है, ताकि किसी न किसी माध्यम से उनकी बात मुखिया तक पहुँच पाए।
बीजापुर से रायगढ़ तक पुलिस जवानों का दर्द,
छ ग पुलिस के विभागीय अधिकारियों की तानाशाही और दुर्व्यवहार से जवानों का मनोबल टूटने लगा है।। इस वजह से न केवल जवानों का मानसिक स्थिति प्रभावित हो रही है बल्कि बड़ी संख्या में राज्य पुलिस के जवान आत्महत्या तक करने लगे है।। हाल ही में बढ़ती आत्महत्या की घटनाओं के बाद प्रदेश सरकार और राज्य पुलिस विभाग थोड़ी देर के लिए कुम्भकर्णीय नींद से जागा था फिर थोड़ी बहुत हलचल करने के बाद वापस फिर से अपनी पूर्वावस्था में चला गया। इस दौरान सरकार को दिखाने के लिए कुछ थोड़ी बहुत कागजी खाना पूर्ति जरूर की गई,जिसका धरातल में कोई प्रभाव नही पड़ा । इसके पीछे की वजह पूर्व की तरह विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों को आज भी पुलिस जवानों की मांग और उनकी परेशानियों से कोई सरोकार नही रहा है।
इधर बस्तर में सहित राज्य पुलिस के सशस्त्र बलों में सहायक वरिष्ठ आरक्षक पद की समाप्ति कर सीधे आरक्षक बनाये जाने व एक समान परिस्थितियों में बराबर की सेवा करने के बावजूद वेतन में भारी विसंगति दूर किए जाने सहित जवानों के प्रति विभागीय अधिकारियों को जिम्मेदारी पूर्ण व्यवहार रखे जाने की मांग जवानों में बढ़ने लगी है। ताकि राज्य पुलिस के जवान भविष्य में सम्मान पूर्वक जीवन निर्वहन कर समर्पण भाव से सरकारी सेवा कर सकें।