थोड़ी बात पुलिस जवानों के हालात पर भी की जाए..। 24/7 मुस्तेद रहने के बावजूद प्रदेश के कई जिलों में साप्ताहिक अवकाश का लाभ नही मिल पाना,संसाधनो का अभाव और असम्मान जनक स्थिति का बने रहना घातक…।।

वरिष्ठ पत्रकार नितिन सिन्हा की कलम से..
सिंहघोष/रायपुर:- राज्य में पिछले 15 सालों तक विपक्ष में रही कांग्रेस पार्टी के लिए सत्ता तक पहुंचने का सबसे आसान रास्ता राज्य में चल रहे पुलिस आंदोलन को समर्थन देना था। इस आंदोलन का हिस्सा बन कर विपक्षी कांग्रेस के नेताओं ने तब आंदोलन कारी पुलिस परिवार के सदस्यों से वायदा किया था कि राज्य की सत्ता में आते ही सबसे पहले पुलिस सुधार की मांग को अक्षरशः लागू किया जाएगा। साथ ही भाजपा सरकार के कार्यकाल में आंदोलन रत पुलिस जवानों पर बनाये गए झूठे प्रकरण वापस लेते हुए उन्हें वापस सेवा में रखा जाएगा।
पुलिस परिवार के लोगो ने कांग्रेस के वायदों पर भरोसा करते हुए उन्हें भरपूर देकर राज्य की सत्ता तो दिला दी। पर सत्ता में आने के करीब ढाई साल बाद भी कांग्रेस सरकार अपने किए वायदों को अमली जामा नही पहना पाई। दूसरे शब्दों में कहें कि चुनावी वायदों को पूरी तरह से भूल गई।
इधर वादा खिलाफी से निराश पुलिस परिवार के सदश्य ढाई साल में अनेकों बार पत्राचार और व्यक्तिगत रूप से नई सरकार और उसके तंत्र से मिलकर राज्य में पुलिस सुधार लागू करने की मांग कर चुके है। परन्तु हर बार झूठे आश्वाशन को छोड़ और कुछ इन्हें नही मिला है। पुलिस सुधार के नाम पर दो सुविधाएं राज्य सरकार ने प्रारम्भ की थी,जिनमें पुलिस जवानों की साप्ताहिक अवकाश और 24/7 काल सेंटर थी। हालाकि आधी अधूरी इच्छाशक्ति के साथ शुरू की गई दोनों सुविधाएँ कुछ ही दिनों में दम तोड़ दी। ठगे जाने के एहसास के साथ पुलिस परिवार के सदस्य विपक्षी पार्टी भाजपा के कद्दावर नेता एवं नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक से भी मिलने गए,उनसे भी कांग्रेस सरकार के तत्कालीन घोषणा पत्र का जिक्र किया और बताया कि किस तरह सत्ताधारी दल उनसे किये वायदों को भूल चुका है।
राज्य पुलिस के जवान बताते है कि आज हालात ऐसे है कि कई स्थानों से साप्ताहिक अवकाश गुम चुका है अर्थात अवकाश का लाभ नही मिल रहा है। इसे लेकर पुलिस जहां सोशल मीडिया में राज्य की कांग्रेस सरकार का 2 वर्ष पूर्व का आदेश आपस में साझा कर रहे हैं। उनकी पोस्ट पर लिखा हुआ है-

इधर विभागीय शोषण और आत्मसम्मान की जो लड़ाई राज्य के पुलिस जवान वर्ष 2000 से लड़ रहे है उसे लेकर भी राज्य की नई कांग्रेस सरकार और उसका तंत्र कितना गम्भीर है,उसका नमूना पुलिस जवानों ने पेश करते हुए सरकारी सिस्टम के आगे सवाल खड़े किए हैं।जिंसमे जांजगीर जिले के सुविख्यात मेले तुर्री-नगरदा में ड्यूटी के दौरान जवानों को किस स्तर का खाना दिया गया,उसकी इमेज आपस में शेयर की जा रही है। कागज की प्लेट पर मोटा चांवल और टमाटर की पानी वाली चटनी उन्हें 24 घण्टे की निरन्तर सेवा के बाद खाने में दिया गया था।

इधर पुलिस सुधार के साथ सम्मान पूर्वक सेवा काल पूरा करने की चाह में राज्य में पुलिस जवानो का शोषण बदस्तूर जारी रहा। सेवारत पुलिस जवानों का कहना है कि राज्य सरकार अपने अधीन 52 विभागों का देख-रेख तो करती है परन्तु पुलिस विभाग को phq के जिम्मे रख छोड़ा है,यही से बात बिगड़ती है। राज्य सरकार ने पुलिस पे कमीशन को लेकर भी अब तक कोई गम्भीरता नही दिखाई है। ऊपर से अनुशासन के नाम पर हम पुलिस या अर्धसेना के जवानों का अमानवीय शोषण कभी किसी सरकार के लिए विचारणीय मुद्दा नही रहा। जबकि सेवा काल मे सबसे ज्यादा मौत(शहादत)हमारे ही विभाग में होती है। विभाग के बड़े अधिकारियों से लेकर सरकार के मंत्री हमारे शहीद भाइयों के शवों पर सिर्फ फूल माला चढ़ाने आते है,बाकी हमारे दुख/सुख से उन्हें कोई लेना देना नही होता है।।
इसी बीच राजधानी के कंट्रोल रूम में पदस्थ आपरेटर किसी dsp के द्वारा दी गई अभद्र गालियों सहित जगदलपुर में तैनात छ ग पुलिस के सशस्त्र बल के जवान को कमांडेंट का अंडरवियर न धोने पर सजा के रूप में कारण बताओ नोटिश के अलावा स्थान्तरण का मामला पुलिस जवानों में काफी चर्चित रहा। पुलिस जवान ऐसे तमाम मामलों को लेकर सोशल मीडिया में एक साथ मुखर विरोध करते देखे गए। विडम्बना यह रही कि ऐसे दर्जनों विवादास्पद घटनाओं की जानकारी राज्य सरकार को होने के बावजूद किसी भी मामले में सरकार की तरफ से शोषित पुलिस जवानों के पक्ष में कोई सार्थक पहल नही की गई। पुलिस परिवार के लोगों में सरकार के ऐसे व्यवहार से गहरी निराशा भी हुई। इसके बावजूद प्रदेश भर में पुलिस जवान समानता और जायज सुविधाओं की मांग को लेकर अपने-अपने स्तर पर प्रयास करते रहे। नगर सैनिको से लेकर सहायक आरक्षकों ने भी कई बार जनप्रतिनिधियों को लिखित आवेदन देकर व्यवस्था में बदलाव की मांग की। परन्तु आश्वासनों के अलावा कुछ हाथ नही आया। जिला पुलिस में आरक्षक के पद पर तैनात एक पुलिस जवान ने नाम न लिखे जाने के शर्तों पर अपना अनुभव शेयर करते हुए कहा कि हमारे लिए या सशस्त्र बल के हमारे भाइयों के लिए हालात कुछ भी नही बदले है,जानवरों पर भी उसके मालिक दया भाव रखते है। परन्तु हमारा ही विभाग एक ऐसा विभाग है जहां वरीय अधिकारी सामान्य पुलिस वालों को इंसान मानने को तैयार नही होते हैं। राज्य निर्माण से लेकर 21 सालों बाद भी हम वहीं के वहीं खड़े है। सेवा के नाम पर असहनीय गाली-गलौज सुनना हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। बीच मे खुद संवेदनशील dgp साहब ने कुछ बेहतर करने का प्रयास किया था। परन्तु आज सब कुछ पूर्ववत हो गया है।। बाकी विभागों की तरह हमारे विभाग में अप्रत्यक्ष रूप से सन्चालित स्थान्तरण उद्योग की चर्चा तो आपने भी सुनी होगी।।
वही प्रदेश में जबरदस्त सेवाकाल के दबाव और विभागीय प्रताड़नाओं के कारण सामान्य पुलिस जवान से लेकर थाना प्रभारी स्तर के लोगों ने बड़ी संख्या में आत्महत्याएं की।। आकडों पर नजर डाले तो पाएंगे कि वर्ष 2019 से 2021 के शुरुवाती दौर में 11 पुरूष आरक्षक/जवान जिनमे से 8 सिर्फ बस्तर में 3 महिला पुलिस कर्मी और 2 थाना प्रभारियों ने आत्महत्याएं की हैं। समाचार लिखे जाने तक छ ग सशस्त्र पुलिस बल caf में तैनात एक जवान के अपनी ही सरकारी बंदूक से अपनी जान ले लेने की खबर समाचार पत्रों में पढ़ने को मिली है।
राज्य के पुलिस परिवारों के लिए बहुप्रतीक्षित “पुलिस सुधार” का लागू होना आज भी स्वप्न बना हुआ है।