विविध

लाकडाउन में.…लोकतंत्र का चौथा स्तम्ब कितना मजबूर और जरूरतमंद है,आपने कभी समझने की कोशिश की..??..नवरतन शर्मा

कड़वा सच…

मित्रों,आम तौर पर हमारे समाज का एक साधन संपन्न,क्षमतावान वर्ग (जिसमें नौकरशाह/कारोबारी/उद्योगपति/जन प्रतिनिधि/राजनीतिज्ञ/समाजसेवी/संगठनों के अध्यक्ष आते हैं।) वो अपने क्षेत्र के अखबारों,न्यूज चैनलों,वेब पोर्टलों पर अपनी पाजेटिव इमेज या रसूख प्रदर्शन को बरकरार रखने के लिए क्या कुछ नही करते है.? जिस तरह उनकी वास्तविकता हमसे छुपी नहीं होती है। उसी तरह से यह समझ लीजिए कि उनकी ऐसी पाजेटिव इमेज को समाज के सामने रखने वाले शब्दों के जादूगर(पत्रकारों)की जरूरतों को लेकर इस वर्ग की संवेदनहीनता भी हमसे छुपी नही है।।

आप आपसी चर्चा से लेकर सोशल मीडिया के तमाम मंचों में देख सुन या पढ़ रहे होंगे कोविड 1-2 लाकडाउन की वजह से ये व्यपारी,वो उद्योगपति,फला कारोबारी को बड़ा नुकसान हो रहा है। वही सरकारी नौकरशाह/ कर्मचारी भी अपनी व्यथा सुनाते मिल जाते है। माना कि इस तरह के लाकडाउन की वजह से कारोबारियों का काम-काज प्रभावित हुआ है। सरकारी सेवादारों के ऊपरी कमाई का जरिया करीब-करीब बन्द हो चुका है। उद्योगपतियों का भी बड़ी परेशानी से गुजारा हो रहा है।

परन्तु ऐसी तमाम चर्चाओं के बीच आपने कभी किसी पत्रकार को अपनी तकलीफ बयां करते सुना है। शायद नही.?? जबकि यथार्थ तो यह है कि इस अवैतनिक या अल्प वैतनिक आभार मुक्त पेशे से जुड़े लोग कोविड लाकडाउन में सबसे ज्यादे तकलीफ में गुजर-बसर कर रहे है। तकलीफ की बात तो यह है कि इस पेशे से जुड़े लोगों की सहायता के लिए न तो समाज का कोई दानवीर वर्ग सामने आता है,न ही कथित संवेदनशील सरकार इन्हें लेकर कोई योजना बनाती है। ऊपर से कोविड खतरों के बीच लगातार समाज और देश हित मे काम करते हुए अपनी जान तक दे रहे इस पत्रकारों को कोरोना वारियर्स का सम्मान मिल पाता है। बाकी का तो छोड़िए साहब देश-प्रदेश के तमाम पत्रकार संघों,संगठनों और समितियों के सो कॉल्ड राष्ट्रीय या प्रदेश अध्यक्षो या अन्य झंडाबरदारों को भी इतनी फुर्सत नही है कि लाकडाउन के बीच वो अपने से जुड़े हमपेशा लोगों की आर्थिक और मानसिक स्थिति का संज्ञान ले लें।।

इन सबके बावजूद आपकी हर परेशानियों का हल बनकर सबसे सरल-सहज रूप में उपलब्ध इस वर्ग को आपसे कोई शिकायत नही हैं।

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