रायगढ़

जमीन फर्जीवाड़ा का मामलाथाने में लिखित शिकायत…।।

तत्कालीन पटवारी राम प्रसाद पटेल के साथ जमीन दलालों ने दिया कृत्य को अंजाम….।।

सिंहघोष/रायगढ़-10.10.21- शहर के पास मेडिकल कालेज की स्थापना के बाद से ही मेडिकल कालेज क्षेत्र में लगातार बढ़ती जमीन की कीमतों ने सभी जमीन कारोबारियों को अपनी तरफ आकर्षित किया ।

उनके द्वारा यहां खरीदी गई जमीनें महज कुछ समय में ही दोगुनी से तीन गुनी कीमतों में बेची गई। आज मेडिकल क्षेत्र में जमीन की कीमतें लाखों रुपये एकड़ पहुंच चुकी है। जमीन खरीद बिक्री का यह दौर वर्ष 2005 से 2018 तक काफी जोरों पर रहा। इस दौरान कम समय मे ज्यादा पैसे कमाने की फिराक में यहां बहुत से जमीन फर्जीवाड़ों को भी अंजाम दिया गया।

फर्जीवाड़ों के इस क्रम में जमीन कारोबारियों के अलावा कुछ तत्कालीन पटवारियों की भूमिका भी सन्दिग्ध रही है। तमाम भूमि फर्जीवाड़े के बीच हाल ही में एक नया मामला प्रकाश में आया जो मेडिकल कालेज रोड में ग्राम नावापाली में मुख्य मार्ग पर स्थित 75 डिसमिल भूमि से जुड़ा है। जिसकी बाजार में आज वर्तमान कीमत कम से कम 40 लाख रु प्रति एकड़ होगी । उक्त भूमि का खसरा नमंबर 56 रकबा 0.265 हे है।यह भूमि मरहूम दलित किसान और वन विभाग में माली के पद पर कार्यरत स्व.रामनाथ चौहान की थी। उसकी मृत्यु वर्ष 2011 में में होने के बाद भूमि के असल हकदार उसकी विधवा पत्नि सहित उसके दो बेटे और एक बेटी होती।

पिता की मृत्यु के पश्चात भूमि पर सालों से खेती बाड़ी करते आ रहे बेटों को हाल की के दिनों में इस बात की जानकारी मिली कि उनके पास सभी वास्तविक दस्तावेजों के होते हुए भी रिकार्ड में भूमि उड़ीसा के कुचिन्दा में रहने दूसरे व्यक्ति के नाम पर बता रही है। इस बात की तस्दीक करने के बाद स्व. रामनाथ चौहान के बेटों ने अधिवक्ता की सहायता से भूमि के दस्तावेज निकलवाये तब उन्हें मालुम चला कि यह भूमि बिना उनकी जानकारी के वर्ष 2006 में उंक्त व्यक्ति जेठू बाग पिता रामसिंह बाग निवासी कुचिन्दा जिला झारसुगड़ा को बेच दी गई है। विक्रय पत्र में गवाह के रूप में दो नामचीन जमीन दलालों के नाम दर्ज है। इन दोनों के साथ तत्कालीन पटवारी राम प्रसाद पटेल का पीड़ितों के घर आना जाना था खासकर अबरार उसके पिता के सम्पर्क में ज्यादा था।

पीड़ितों के बताए अनुसार दोनों जमीन दलाल अक्सर पिता को बैंक से लोन दिलवाने की बात कहते थे। इस दरम्यान उंन्होने जमीन के दस्तावेज की छाया प्रति और पिता सहित भाई मेहतर की फ़ोटो ले ली थी। तब हमारी भूमि में रिकार्ड अनुसूचित जाति की जगह जनजाति में दर्ज हो गया था।

वर्ष 2005 में हमारे गांवों में जमीनों की खरीद बिक्री तेज हो गई थी। शहर के कई जमीन दलाल हमारे गांव आते जाते थे। पटवारी राम प्रसाद भी नौकरी के अलावा जमीन खरीद बिक्री का काम करता था।

तीनो कई बार हमारे पिता को जमीन बेचने का प्रलोभन दे चुके थे। परन्तु पिता और हम सब तैयार नही होते थे। इस बीच हमारी जमीन के पीछे गांव के साहू लोगों की जमीन 7 लाख रु एकड भाव मे 10 एकड़ भूमि बिक गई परंतु हमारी जमीन को लिए बिना पीछे की जमीन पर आने जाने का रास्ता नही था। इस बात को भली भांति जानते हुए हम में से कोई भी अपनी जमीन देने को तैयार नही थे।

अतः पटवारी राम प्रसाद और दोनों जमीन दलालों ने मिलकर फ़र्ज़ी और कूटरचित दस्तावेजों के सहारे मेरे पिता और हम सब के नाम पर दर्ज उक्त भूमि को तब बेच दिया।

पंजीयन कार्यालय से प्राप्त दस्तावेजों के निरीक्षण पर हमने पाया कि भूमि विक्रय दस्तावेजों में विक्रेता हमारे पिता के नाम पर अलग-अलग अंगूठे का निशान लगाया गया है,जो कि गलत है,हमारे पिता सरकारी सेवा में थे और लिखा पढ़ी करते थे। वो हमेशा अपना हस्ताक्षर हिंदी में अपना नाम लिख कर करते थे। वही भूमि के विक्रेतागणों में दूसरा नाम खुद शिकायत कर्ता मेहतर का लिखा दिखाया गया है यहां भी मेहतर का हस्ताक्षर फ़र्ज़ी है। यहां तक कि पटवारी पटेल द्वारा बनाये गए विक्रय पत्र में तब भूमि की हिस्सेदार बहन मेहतरीन को नाबालिग बताया गया है। जबकि पटवारी और दलाल अच्छी तरह से जानते थे बहन की उम्र तब करीब 21 साल थी और वह बालिग थी।

अब जब हमे हमारी भूमि के फ़र्ज़ी तरीके से बिकने की जानकारी हुई है और लोगों से पता चला कि उक्त फर्जी खरीद बिक्री में यह लोग शामिल रहे है। तब हमने न्याय पाने के लिए थाना चक्रधरनगर में लिखित शिकायत पेश किया है। ताकि पुलिस जांच के बाद उक्त कृत्य में शामिल सभी दोषी लोगों को उचित दण्ड मिल पाए और हमें हमारी जमीन भी वापस मिले।

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