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आखिर क्यों और कब तक…??भारतीय सैनिकों की जान,क्या सरकार और उसके तंत्र की जिम्मेदारी नही है…?? नितिन सिन्हा की कलम से…

इस सवाल का जवाब आजादी के बाद से आज तक कि किसी सरकार ने देना उचित नही समझा है,वर्तमान सरकार भी उसी परंपरा का निर्वहन कर रही है।।

जबकि मुझे लगता है कि,एक जिम्मेदार पत्रकार होने के नाते बाड़मेर से कांगो तक भारतीय सैनिकों की असमय मौत पर सरकार के समक्ष सवाल उठाना मेरा धर्म है।

मैं या मेरी पंक्ति में खड़े सैकड़ो जिम्मेदार पत्रकार इस धर्म का बखूबी पालन कर रहे है। जो गलवान से लेकर कांगों तक भारत सरकार की नीतियों पर सवाल करने का साहस करते है। हालांकि हमारी बिरादरी में कुछ ऐसे पोषित पत्रकार भी है जो गलवान से लेकर बाड़मेर तक के मामलों में सरकार व उसकी नीतियों को सही जबकि शहीद सैनिकों को गलत बताने में भी नही चूकते है।
वैसे तो अब तक कि कोई भी सरकार हमारे सवालों और अपनी जिम्मेदारियों दोनों से भागती रही है।

इस वजह से आये दिन हम हमारे होनहार देशभक्त नौजवानों को लगातार खोते जा रहे हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे जवानों की मौत दुश्मन के हमले या आमने सामने की लड़ाई से कहीं ज्यादा संसाधनों का अभाव,गलत रणनीति,अत्यधिक मानसिक और शारीरिक शोषण,अफसरों का दुर्व्यवहार,आपात चिकित्सा का अभाव और अवकाश की कमी बड़ी संख्या में भारतीय जवानों की मौत का मुख्य कारण रहा है। इनमें से सिर्फ आत्महत्या के मामलों को लें तो हर तीन दिन में एक जवान/सैनिक आत्महत्या करता है। इस लिहाज से भारत मे साल में करीब 100 से अधिक सैनिक/जवान सेवा के दौरान खुद को गोली मार कर आत्महत्या कर रहे हैं।। जोधपुर में crpf के जवान नरेश जाट की आत्महत्या बेहद प्रासंगिक मामला है। जिसने सुरक्षा बलों के पूरे आंतरिक तंत्र को झकझोर कर रख दिया है। लेकिन विडम्बना देखिये कि अभी तक हमारी केंद्र सरकार या गृह मंत्रलाय ने जवानों के आत्महत्या और आपसी शूटआउट जैसे गम्भीर मामलों को लेकर आज तलक न तो कोई चिंता जताई न ही स्वेत पत्र जारी किया है।

इधर उड़न ताबूत ने फिर ली दो होनहार नौजवान भारतीय पायलटो की जान….

बीते 3 दिनों पूर्व एक और मिग-21 विमान बायटू क्षेत्र में एक उड़ान के दौरान दुर्घटना ग्रस्त हो गया था। इस दुर्घटना में नौजवान विंग कमांडर एम राणा और फ्लाइट लेफ्टिनेंट अदितिया बल शहीद हो गये थे। मीडिया में घटना की रिपोर्ट दिखाएं जाने के बाद हर बार की तरह वायुसेना की तरफ से आए एक बयान में कहा गया कि दुर्घटना का सही कारण अभी पता नहीं चला है।

भारतीय वायुसेना ने हादसे के कारणों का पता लगाने के लिए ठीक उसी तरह से कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दिए हैं। जैसा कि अब से पहले के 400 मिग 21 विमान दुर्घटनाओं में दिए गए थे।।

भारतीय वायु सेना ने अपने रटे-रटाये बयान में कहा है कि, “भारतीय वायुसेना को दो पायलटों के जान गंवाने का गहरा अफसोस है औरअवायु सेना शोक संतप्त परिवारों के साथ खड़ी है। दुर्घटना के कारणों का पता लगाने के लिए कोर्ट ऑफ इंक्वायरी का आदेश दिया गया है. राष्ट्र के लिए उनकी सेवा को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। जबकि भारत के वर्तमान रक्षा मंत्री ने राजनीतिक परंपरा का निर्वहन करते हुए वही किया जिसकी अपेक्षा थी। आपने भी पायलटों की मौत पर शोक व्यक्त किया है।।

आश्चर्य की बात ये है कि ऐसा पहली बार नहीं है जब इस विमान से दुर्घटना हुई हो, मगर न जाने क्या वजहें हैं कि इस विमान को भारतीय सेना से बाहर नहीं किया जा रहा है। अकेले साल 2021 में इस विमान से पांच हादसे हुए थे। तब ऐसा लगा था, इस साल उड़न ताबूत mig 21की सेवा का अंतिम वर्ष होगा। इसके बावजूद इस विमान को भारतीय एयरफोर्स के बेड़े से नहीं हटाया गया। एक आंकड़े के मुताबिक पिछले छह दशकों में मिग-21 से जुड़ी हुई 400 से अधिक दुर्घटनाएं हुई हैं,जिसमें 200 से अधिक होनहार भारतीय पायलटों की जान गई है। यह आकंड़ा डराने वाला है लेकिन सिर्फ उन्हें जो जिम्मेदारी लेने को तैयार हों। हालाकि भारतीय राजनीति में जिम्मेदारी शब्द की कहीं कोई कीमत और सम्भावना नही बची है।।

अब आइये un शांति मिशन की बात करें तो इस तरह की वैश्विक सुरक्षा व्यवस्था में भारत सरकार अपने बहादुर सैनिकों को वर्ष 1948 से विदेशों में शांति स्थापना के लिए भेजती रही है।

1948 के बाद से दुनिया भर में अब तक 71 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में से 49 में 2 लाख से अधिक भारतीय सैन्य और पुलिसकर्मियों ने अपनी सेवा दी है. वर्तमान में, भारत से 7000 से अधिक सैनिक और पुलिसकर्मी अभियान में शामिल हैं, जिन्हें संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में अलग-अलग जगहों पर तैनात किया गया है.संयुक्त राष्ट्र के 71 शांति मिशन में 49 में भारत शामिल रहा है। यूएन शांति अभियानों में अब तक 168 भारतीय सैनिक भी शहीद हुए हैं।

बीते मंगलवार को कांगों शांति अभियान में संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन का हिस्सा रहे पांच जवान को शहीद हो गए थे। इनमें बीएसफ के दो जवान भी शामिल थे। जिनका नाम हेडकांस्टेबल शिशुपाल सिंह और हेडकांस्टेबल सांवला राम बिश्नोई बताया गया. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोनों सैनिकों की शहादत पर दुख जताते हुए शोक संतप्त परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की. परन्तु उन्होने मिशन के जिम्मेदार लोगों के समक्ष यह सवाल नही उठाया कि उक्त हिंसक झड़प के दौरान वहां तैनात भारतीय सैनिकों की गोलियाँ कैसे बीच झड़प में ही खत्म हो गई? उन्हें जरूरी संख्या में अस्त्र-शस्त्र क्यों नही उपलब्ध कराया गया ? कैसे इतने बड़े और सुनियोजित हमले की पूर्व जानकारी un मिशन के सूचना तंत्र को नही लगा.?

बुटेंबो के हिंसक विरोध में घायल होने के बाद दोनों जवानों ने तोड़ा दम

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, संयुक्त राष्ट्र मिशन के खिलाफ कांगो के पूर्वी शहर गोमा में हुए प्रदर्शन के दूसरे दिन कम से कम पांच लोग मारे गए और लगभग 50 अन्य घायल हो गए. बीएसएफ के एक प्रवक्ता के अनुसार 26 जुलाई दिन मंगलवार को कांगो के बुटेम्बो में तैनात संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षक दल में शामिल बीएसएफ के दो जवानों ने हिंसक सशस्त्र विरोध के दौरान घायल होने के बाद दम तोड़ दिया था।

उक्त हमले के बाद कांगों में शांति अभियान वापस से जारी है,वही बाड़मेर mig 21 दुर्घटना के बावजूद 2025 तक भारतीय वायुसेना में बनी रहने की बात सरकार कह रही है।मतलब दोनों जगहों पर भारतीय सैनिकों की सुरक्षा को लेकर सवाल आज भी उतना ही गम्भीर बना हुआ है.

ऐसे में ईश्वर से हमारी यही प्रार्थना है कि वो भारतीय वायुसैनिकों और सुरक्षा कर्मियों की अपनी तरफ से रक्षा करें।।।।

आइये बाड़मेर में शहीद दोनों होनहार भारतीय पायलटों के साथ कागों शांति मिशन में शहीद bsf के दोनों जवानों और crpf के मृत जवान नरेश जाट को हम सादर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करें…

लेकिन आपसे एक निवेदन भी है कि आप हमारी तरह हमारे जवानों की सुरक्षा और सुविधाओं को लेकर अपनी सरकारों से सवाल जरूर पूछते रहिये अन्यथा सरकारें अंधे-भैरों की तरह सिर्फ अपने मतलब के लिए काम करती रहेगीं।।।

क्योंकि मुझे ऐसा लगता है कि प्रत्येक भारतीय सैनिक की जान और सम्मान की सुरक्षा करना सरकार और उसके तंत्र की पहली महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होनी चाहिए..

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