रायगढ़

बदलते मौसम और तेज़ धूप में करें आंखों की विशेष देखभाल:-डॉ (मेजर) नीलम भगत

कंजंक्टिवाइटिस से बचने आंखों को न छूएं,बरतें सावधानी…। एनीमिक और डायबटिक मरीज कंजंक्टिवाइटिस से बचें…।।

सिंहघोष/रायगढ़-२३.०४.२२-बीते दो दिनों से रायगढ़ का तापमान 43 डिग्री सेल्सियस है और आने वाले कुछ दिनों तक गर्मी लू का खतरा बना हुआ रहेगा ही है। ऐसे में कई बीमारियों का खतरा बना रहता है जिनमें कंजंक्टिवाइटिसक (आंख आना) प्रमुख है। आंखें अनमोल हैं और इनकी सुरक्षा बेहद जरूरी है। इसलिए आंखों को न छूकर तथा अच्छे किस्म के चश्मों का प्रयोग कर इन्हें काफी हद तक संक्रमण से बचाया जा सकता है।

वरिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ (मेजर) नीलम भगत के मुताबिक कंजंक्टिवाइटिस का समय से उपचार न कराने पर यह गंभीर हो सकता है। बीमारी की वजह से आंख में सूजन आ जाती है ऐसे में पीड़ित को नेत्र-रोग विशेषज्ञ से उपचार लेना चाहिए।

डॉ. भगत कहती हैं, “कंजंक्टिवाइटिस आंखों की आम बीमारी है, जिसे हम आंख आना भी कहते हैं। यह संक्रामक बीमारी है जो संपर्क से फैलती है। अतः अपनी आंखों को हाथ नहीं लगाना चाहिए आवश्यक हो तो हाथों को साबुन से धोकर या फिर सेनिटाईज करके ही आंखों को छूना चाहिए। तेज़ धूप में घर से बाहर निकलने पर गॉगल्स या चश्मा लगाना बेहद जरूरी है। यह न सिर्फ आंखों को सुरक्षित रखता है बल्कि तेज़ धूप, धूल और संक्रमण से भी बचाव करता है।

सबसे ज़रूरी बात है कि मधुमेह और एनीमिक मरीजों में अगर यह बीमारी लगी तो स्थिति बिगड़ सकती है। कई दफे मरीज नेत्र-रोग विशेषज्ञ से सलाह न लेकर दवा दुकान से दवा लेते हैं जिसमें स्टेयरॉइड की मात्रा अधिक होती है। यह स्टेयरॉयड फंगल और वायरल इंफैक्शन को बढ़ा देते हैं। यही आगे चलकर आंख को पूरी तरह से खराब कर देते हैं।”

इस बीमारी के कई प्रकार हैं
कंजंक्टिवाइटिस (आँख आना) (या गुलाबी आंख) कंजाक्टीवा एक प्रकार का सूजन है जो पारदर्शी श्लेष्म झिल्ली आंख के सफेद हिस्से को कवर करती है। इसके कई प्रकार होते हैं। जिसमें बैक्टीरिया एक-दूसरे के संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने, दूषित सतहों के संपर्क में आने या फिर अन्य साधनों जैसे साइनस या कान में संक्रमण के माध्यम से फैल सकता है । इसे बैक्टीरियल कंजंक्टिवाइटिस कहते हैं। इसी तरह वायरल कंजंक्टिवाइटिस गुलाबी आंख (पिंक आई) का एक और सामान्य प्रकार है जो संक्रमित से छींकने और खांसने से फैल सकते हैं। यह आम वायरल ऊपरी श्वसन संक्रमण जैसे कि खसरा, फ्लू या सामान्य सर्दी के साथ भी हो सकता है। एलर्जिक में आंखों की एलर्जी के कारण लाल आंख होना भी आम है। आंखों की एलर्जी पोल्लेन (पराग), जानवरों की रूसी और धूल के कण सहित एलर्जी से उत्पन्न हो सकती है। गैर-संक्रामक कंजंक्टिवाइटिस आंखों की जलन पैदा करता है। यह कई स्रोतों से हो सकता है, जिसमें धूम्रपान, डीजल का धुआं, इत्र और कुछ रसायनिक पदार्थ का संक्रमण शामिल हैं।

फंगल कार्नियल अल्सर का भी खतरा
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. (मेजर) नीलम भगत ने बताया “फंगल कंजंक्टिवाइटिस” भी कंजेक्टिवाइटिस का एक प्रकार है जो धान कटाई करते समय आँख में धान की पत्ती लग जाने से या पेड़-पौधों से आँख में चोट लगाने से होता है। छत्तीसगढ़ में धान कटाई के समय यह “फंगल कंजंक्टिवाइटिस” बहुत होता है। शुरू में ज्यादा तकलीफ़ नहीं होती तो रोगी देर कर देता है और देरी होने से “फंगल कार्नियल अल्सर” होने का खतरा रहता है। इससे दृष्टिहीनता तक हो सकती है। डॉ. भगत के अनुसार शहर के अस्पतालों में कई मरीज इस बीमारी के चलते काफी दिनों तक भर्ती रहते हैं। बचाव के लिए धान कटाई के समय सादा चश्मा लगाना चाहिए ।

आंख आने के लक्षण और बचाव
आंखें लाल होना, आंखों से पानी आना, आंखों में जलन होना, चुभन होना, बार-बार कीचड़ आना,पलकों में सूजन और आंखों में दर्द होना मुख्य लक्षण है। बचाव में लोग हाथों को आंखों में न लगाएं। हाथों को साफ करके ही आंखों को छूएं। जलन, खुजली या फिर आंखें लाल होने पर साफ पानी से आंखों को तीन से चार बार धोएं। रोगी से हाथ मिलाने और उसकी उपयोग की चीजें अलग कर इस बीमारी के फैलाव को रोका जा सकता है। आंखों को साफ पानी से धोएं, आंखों को पोछने के लिए साफ कपड़ा या कॉटन का इस्तेमाल करें। एंटीबायोटिक आई ड्रॉप (तीन दिनों तक) दिन में छह बार आंखों में डालें व नेत्र-रोग विशेषज्ञ से आंखों की जांच कराएं।

Advertisement
Advertisement
Advertisement

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button