मेडिकल कॉलेज अस्पताल में नहीं हो रहा मरीजों का इलाज…। बुखार से तपती महिला को अस्पताल से दे दी गई छुट्टी…।।

मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर कर रहे अपने पेशे के साथ बेईमानी- रुक्मणि साहू
बाढ़ राहत शिविर में महिला हुई बीमार, शरीर मे था केवल 2 ग्राम खून, पार्षद की पहल से डॉ रूपेंद्र पटेल ने बचाई जान किया निःशुल्क इलाज…।।
सिंहघोष/रायगढ़.23.08.22.एक बार फिर से रायगढ़ मेडिकल कॉलेज में बीमार मरीज को इलाज से वंचित करने और उसकी जान के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लग रहा है।गांव की बीमार महिला को गम्भीर अवस्था मे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई जिसके बाद डॉ रूपेंद्र पटेल ने उसका इलाज किया फिलहाल महिला स्वस्थ है और वह अस्पताल से घर जा चुकी है।
रायगढ़ मेडिकल कॉलेज की मनमानी रुकने का नाम नही ले रही है यंहा न ही कोई प्रशासनिक दखल काम आता है न ही जनप्रतिनिधियों की बात सुनी जाती है जिसका नतीजा ये है कि गांव के भोले भाले लोग निजी अस्पताल में इलाज कराने विवश है।यू तो दावे किए जाते है कि मेडिकल कॉलेज के शुरू होने से जिले में बेहतर मेडिकल सुविधाओ में इजाफा हुआ है लेकिन असलियत इससे कंही अलग है।
ऐसा ही एक मामला हम आपको अब बताने जा रहे है।रायगढ़ जिले के पुसौर में बाढ़ प्रभावित शिविर में एक महिला की तबियत खराब होने की वजह से उसे पुसौर स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया महिला के शरीर मे मात्र 2 ग्राम ही खून था जिसकी वजह से उसे मेडिकल कॉलेज रायगढ़ शिफ्ट किया गया जंहा महिला को 2 यूनिट ब्लड चढ़ाया गया। उसे और ब्लड की आवश्यकता थी परिवार ब्लड डोनर की तलाश में ही था कि महिला की अस्पताल से छुट्टी कर दी गई।वार्ड पार्षद रुक्मणि साहू जो बीमार महिला के इलाज के लिए प्रयासरत थी उन्होंने मेडिकल कॉलेज के स्टाफ से चर्चा की जंहा उन्हें संतोषजनक जवाब नहीं मिला।चूंकि ग्रामीण महिला मेडिकल हॉस्पिटल से डिस्चार्ज होने के समय बुखार से तप रही थी।वार्ड पार्षद रुकमणी साहू ने उसे डॉ रूपेंद्र पटेल के अस्पताल में दाखिल कराया जंहा जांच में पता चला कि महिला के शरीर मे 4 gm ब्लड है।महिला को अस्पताल में पुनः भर्ती कराया गया।यदि समय रहते महिला को अस्पताल दाखिल नही कराया गया होता तो आज शायद वह जीवित ही नही होती।
पार्षद रुक्मणि साहू ने मेडिकल कॉलेज की अव्यवस्था पर सवाल उठाए है।उनका कहना है कि मेडिकल कॉलेज अस्पताल में गरीब बीमार का इलाज न करना और बीमार हालत में मरीज को डिस्चार्ज कर देना न केवल ग़लत है बल्कि डॉक्टरी पेशे के साथ बेईमानी भी है।