रायगढ़ मे पत्रकार सत्यजीत घोष पर हुए जानलेवा हमले को लेकर अमित जोगी ने इसकी कड़ी निंदा की है।

सिंहघोष/रायगढ़-15-06.24- रायगढ़ मे पत्रकार सत्यजीत घोष पर हुए जानलेवा हमले को लेकर अमित जोगी ने इसकी कड़ी निंदा की है।
प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए अमित जोगी ने कहा कि- पत्रकार सत्यजीत घोष रायगढ़ प्रेस क्लब के सक्रिय सदस्य के ऊपर 10/6/2024 की रात लगभग 10:30 बजे 2 युवकों द्वारा प्राणघातक हमला किया गया सर पर लगी गंभीर चोट की वजह से रायगढ़ के पत्रकार जिला चिकित्सालय में 4 दिन तक एडमिट रहे। पुलिस ने 12/6/24 को दो आरोपियों को गिरफ्तार किया हैं। लेकिन रायगढ़ पुलिस विभाग के द्वारा पत्रकार के ऊपर हुए इस सांघातिक हमले से संबंधित सभी तथ्यों को गलत तरीके से प्रसारित किया गया हैं। पुलिस ने आज जानलेवा एवं इस कथित सुनियोजित तथा प्रायोजित किए गए प्राणघातक हमले को महज आपसी रंजीश के कारण लड़ाई झगड़ा होना बताते हुए वास्तविक तथ्यों को गलत ढंग पूर्वाग्रह से ग्रस्त सर्व संबंधितों के समक्ष दी गई जानकारी व गवाहों के लेखबद्ध बयान को भी पूरी तरह से अनदेखा किया गया है। पुलिस द्वारा पीड़ित पत्रकार के रिपोर्ट पर कार्रवाई न करते हुए उल्टा आरोपीयों के बयान पर तरजीह देते हुए मामला को ही एक अलग मोड़ दिया गया है जो दुर्भाग्यपूर्ण है। चूंकि सत्यजीत घोष के ऊपर हमला मॉल संचालक,रायगढ़ विधायक व छत्तीसगढ़ के वित्त मंत्री का परम् मित्र हैं इसलिए उसे बचाने के उद्देश्य से पुलिस ने पीड़ित पत्रकार के बयान के आधार पर जाँच नहीं की हैं इसलिए पत्रकार पर हमला कराने वाले के हौसले बुलंद हैं एवं बेखौफ प्रशासन को ठेंगा दिखाया गया है। जब आज लोकतंत्र का चौथा स्तंभ ही आतंकित एवं भयभीत है जो रायगढ़ के लिए अप्रत्याशित घटना है, तो आम जनता का हश्र स्वत: स्पष्ट है।रायगढ़ के इतिहास में ‘ सुपारी’/काॅन्ट्रेक्ट कीलिंग का यह प्रथम वारदात है, जिसकी आने वाले दिनों में पुनरावृत्ति से इन्कार नहीं किया जा सकता। पुलिस द्वारा इस जांच को गलत दिशा में मोड़कर अपनी ही पीठ थपथपाते हुए अपनी ड्यूटी की इतिश्री कर ली गयी है, जिससे पीड़ित पक्ष के साथ साथ रायगढ़ के प्रबुद्ध नागरिकों में काफी रोष है। दंड प्रक्रिया संहिता में शायद कोई नया प्रावधान जुड़ गया है जिसमें पीड़ित पक्ष के मय साक्ष्य बयान एवं साथ में अन्य दो गवाहों के कलमबद्ध बयानों को ताक में रखकर उसे आई वाश मानकर उनकी कोई तरजीह न देते हुए उल्टे आरोपीयों के झूठे बयान के आधार पर बिना जांच के मुख्य आरोपी को बचाने की साजिश सरकार के वित्त मंत्री के इशारे पर की गई है। जो दुर्भाग्यपूर्ण एवं सोचनीय है। प्रशासन व जनप्रतिनिधि पर एक प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।