छत्तीसगढ़

सिटी कोतवाली पुलिस की कार्यशैली पर माननीय उच्च न्यायालय का प्रश्न चिन्ह…।।

फर्जी मामले में गिरफ्तार निर्दोष आदिवासी किसान को जमानत पर रिहा करने का आदेश…।।

प्रकरण में ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए विद्वान न्यायाधीशों की बेंच ने राज्य सरकार के गृह सचिव और कोतवाली टी आई को नोटिस जारी किया

सिंहघोष/रायगढ़.13.01.12.आज से करीब तीन साल पहले सुप्रीम कोर्ट के विद्वान मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दीपक गुप्ता ने विदाई समारोह के दौरान देश की न्याय प्रणाली पर तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा था कि देश का लीगल सिस्टम अमीरों और ताकतवरों के पक्ष में हो गया है। पुलिस से लेकर अदालत तक अमीरों की सुविधाओ के हिसाब से काम करती है। अमीर अगर जमानत पर होता है तो मुकदमे में देरी चाहता है। यही नहीं अगर कोई अमीर सलाखों के पीछे होता है तो कानून अपना काम तेजी से करता है, लेकिन गरीबों के मुकदमों में अनावश्यक देरी होती है। अमीर लोग तो जल्द सुनवाई के लिए उच्च अदालतों में पहुंच जाते हैं लेकिन,गरीब ऐसा नहीं कर पाते।निचली अदालतों को भी गरीबों की आवाज जरूर सुननी चाहिए’ उन्होंने यह भी कहा था कि न्यायपालिका को खुद ही अपना ईमान बचाना चाहिए आज भी देश के लोगों को ज्यूडिशियरी में बहुत भरोसा है।

जस्टिस गुप्ता की कही बात रायगढ़ शहर में 25 दिसंबर 2022 के दिन घटी एक घटना में पूरी तरह से इत्तेफाक रखती है ।

घटना कुछ इस प्रकार है,शहर की सिटी कोतवाली पुलिस ने बीते दिनों शहर के एक करोड़पति विवादित कारोबारी के इशारों पर फर्जी मामले में एक निर्दोष आदिवासी किसान को जेल भेज दिया था। जिसे निर्दोष जानकर पर शहर की निचली अदालतों ने उसे जमानत का लाभ नही दिया था।

जिसके बाद पीड़ित आदिवासी की रिहाई के लिए उसके अधिवक्ता और परिजनों को उच्च न्यायालय बिलासपुर में अर्जी लगानी पड़ी थी। जिस पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय के विद्वान न्यायाधीशों की एक बेंच ने ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए न केवल पीड़ित आदिवासी किसान को फौरन 25 हजार रु की जमानत पर जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया,बल्कि मामले की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने उक्त फर्जी मामले में राज्य सरकार के गृह सचिव सहित रायगढ़ सिटी कोतवाली प्रभारी को नोटिस भी जारी कर दिया।

घटना क्रम में सिटी कोतवाली पुलिस रायगढ़ ने राजस्व न्यायालय में प्रकरण जीतने वाले गरीब आदिवासी किसान मकसीरो को विवादित करोड़पति कारोबारी अजीत मेहता की एक झूठी रिपोर्ट पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 420, 467, 468, 471, 120 बी 34 के तहत आरोपी बनाते हुए गिरफ्तार कर जेल भेज दिया था।

पुलिस की उक्त फर्जी कार्यवाही को चुनौती देते हुए शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता अशोक कुमार/आशीष कुमार मिश्रा चेम्बर के द्वारा आरोपी मकसीरो की ओर से छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय बिलासपुर के समक्ष एक क्रीमनल रिटपिटिशन नम्बर 21 / 2023 दाखिल किया गया। पिटिशन में उनकी तरफ से समूची रिमाण्ड कार्यवाही को ही अवैध होने का दावा पेश करते हुए FIR. निरस्त कराने की मांग की गई।

जिस पर लम्बी बहस सुनने के बाद हाईकोर्ट के विद्वान न्यायाधीश संजय के अग्रवाल और न्यायाधीश राकेश मोहन पांडे की बेंच ने निर्णय देते हुए कहा कि “आरोपी पर यदि न्यायालय में झूठा शपथपत्र देने का आरोप है, तो रिपोर्टकर्ता को धारा 193 भा.दं.वि. के तहत उपचार उपलब्ध था। आगे पिटिशन की सुनवाई के दौरान विद्वान न्यायाधीशों की बेंच ने जेल में निरुद्ध निर्दोष आदिवासी किसान मकसीरो को तत्काल 25 हजार रु की जमानत में जेल से रिहा करने का आदेश जारी किया। और मामले को अपवाद करार देते हुए छत्तीसगढ़ शासन के गृह सचिव तथा कोतवाली के टी.आई.को 10 दिन के भीतर शपथपत्र के साथ अपना जवाब दाखिल करने का अतिरिक्त निर्देश भी दिया। हाईकोर्ट ने इन दोनों को हाथो हाथ नोटिस तामील कराने की अनुमति भी दी है।

इधर बहुचर्चित घटना को देश का पहला मामला बताते हुए, मिश्रा चेम्बर के सीनियर एडवोकेट अशोक कुमार मिश्र ने कहा कि यह प्रदेश का पहला ऐसा मामला है, जिसमें हाईकोर्ट ने क्रीमनल रिट में आरोपी को जमानत पर छोड़ने का आदेश दिया है। हाईकोर्ट के इस आदेश की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करते हुए श्री मिश्रा चेम्बर ने इसे न्याय क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होने वाला निर्णय बताया है।

उन्होंने यह भी कहा कि निचली अदालतों की अनदेखी की वजह से ही पुलिस को इस तरह के फर्जी मामले बनाकर निर्दोषों को प्रताड़ित करने का अवसर मिलता रहा है। सीनियर वकील अशोक कुमार मिश्रा के अनुसार इस मामले का सबसे दुर्भाग्य जनक पहलू यह रहा है कि लोअर कोर्ट से लेकर सेशन कोर्ट तक ने दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 एवं 340 तथा भारतीय दण्ड विधान की धारा 193 को पढ़ने के बाद भी इसके अर्थ को नहीं समझा,जिसके कारण एक निर्दोष गरीब आदमी अवैध रूप से जेल में दाखिल होना पड़ा। साथ ही उसे न्याय दिलाने के लिये हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने की आवश्यकता आन पड़ी।

इस प्रकरण में कानूनी मामलों के जानकारों की माने तो उक्त प्रकरण में उच्च न्यायालय के उक्त आदेश के बाद आने वाले दिनों में सिटी कोतवाली पुलिस की परेशानी निश्चित तौर पर बढ़ने वाली है।

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