चुप रहो,बर्दाश्त करो,सहते रहो,कहीं कलयुग के तथाकथित भगवान आपसे न रूठ जाए–नवरतन शर्मा (सीधी बात नो बकवास)

आम आदमी घर पर रहे सीमित संसाधनों में जैसे-तैसे अपना व अपने परिवार का भरण पोषण करें।।
अगर संसाधन घटने लगे या खत्म हो जाए। तब कोई जनप्रतिनिधि,
समाजसेवी अचानक उसके सामने आए और थोड़ा-बहुत कुछ सामान देकर अपनी फ़ोटो खिंचाए उसे सोशल मीडिया या अन्य प्लेटफार्मो में वारयल करें तो उससे आम आदमी के सम्मान को ठेस नही पहुँचती होगी.? क्योंकि आम आदमी का मान क्या और सम्मान क्या ? इज्जत तो केवल समान देने वालों कि होनी चाहिए।।
उसने फ़ोटो पर आपत्ति की तो गया परिवार के पेट भरने का समान वापस।
आम आदमी की मजबूरी का दान के नाम पर पूरा फायदा उठाने वाले ये क्यों नही सोचते कि जिसको हम सामग्री दे रहे है वह भी अपने बच्चों का घमंड,पत्नी का गौरव,माँ-पिता की शान,बहनों का प्यार/निभाऊं भाई,पड़ोसियों के लिए स्वाभिमानी हो। कल तक वो सुबह से रात तक पसीना बहाकर अपने परिवार का पालन करता था कभी थकान,निराशा का बहाना नही किया।अब अचानक आई इस विपदा के कारण उसके सम्मान,स्वाभिमान की जो अर्थी उसके जीते जी उठाई जा रही है उसे वो सिर्फ इसलिए देख व बर्दाश्त कर रहा है कि उसे अपने परिवार को जीवित रखना हैं और भूखे परिवार की भूख को देख फ़ोटो खिंचने का विरोध करे तो कैसे?क्योंकि कलयुगी भगवान रूठे तो सीधे भैस पे बैठे यमराज नजर आएंगे।
अब बात दूसरे कलयुगी भगवान की-इलाज कर रहे डॉक्टर से स्वस्थ हुवे तो ठीक नही तो इन भगवानों की भी शिकायत करने से कर आप प्रकृति के कानून का उलंघन करने जैसे पाप के भागी बनेंगे। इनको भगवान मानना पड़ेगा नही तो आपको अविलंब भगवान की जन्मभूमि दिखाई जा सकती है। आज के इस विकट समय में इनसे गलती की बात करना भी बड़ा अपराध है। वैसे प्रश्न यह भी उठना चाहिए कि कितने प्रतिशत लोग है.? जो इनके व्यवहार,इलाज से सन्तुष्ट है।जिन्होंने इनकी लापरवाही से अपने या अपनो को खोया है वो इनको भगवान तो क्या इंसान भी कतई नही मानेंगे।
नोटिस से डर माफीनामा देने वाले इन्हें अपना पिताश्री मान सकते हैं, ये उनका व्यक्तित्व निर्णय हो सकता है।लेकिन भुक्तभोगियों की तादाद ज्यादा है,याद रखिएगा इनकी बद-दुवाएं कभी खाली नही जाएगी।