सुसाइड प्रिवेंशन डे 2021: कर्म से जगाएंगे उम्मीद..। मानसिक स्वास्थ्य पर लोगों ने ध्यान देना किया शुरू..।।

मन के हारे हार है, मन के जीते जीत :-डॉ राजेश अजगल्ले
सिंहघोष/रायगढ़ 09 सितंबर 2021, हमें कोशिश करनी है और प्रयास करने हैं और जिंदगी की चुनौतियों से लड़ना है, उनसे हारना नहीं है। आत्महत्या किसी समस्या का समाधान नहीं बल्कि अपनी मुसीबत अपने परिवार या अपने से जुड़े लोगों पर डाल देना है। यह गूढ़ बात जिले के स्पर्श क्लीनिक के काउंसलर लोगों को समझा रहे हैं।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी 10 सितंबर को विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस ( वर्ल्ड सुसाइड प्रिवेंशन डे) मनाया जा रहा है। इस बार की थीम कर्म से उम्मीद जगाना रखी गयी है। इसके तहत आत्महत्या रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएंगे।
वर्तमान में कोरोना के बढ़ते प्रकोप और चर्चाओं के चलते बाकी बीमारियों और स्वास्थ्य समस्याओं को तो जैसे हम भूल ही गए हैं। चर्चा सिर्फ और सिर्फ कोरोना और उससे होने वाली मौतों को लेकर है। इन्हीं सब के बीच पिछले दिनों आई राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट पर शायद हम सबका ध्यान ही नहीं गया। यह रिपोर्ट भारत में हर साल आत्महत्या से होने वाली मौतों को लेकर थी। रिपोर्ट के अनुसार देशभर में 2019 में कुल 1,39,123 लोगों ने आत्महत्या की और इसका रोज का औसत निकालें तो हर रोज करीब 381 लोगों ने आत्महत्या कर अपनी जिंदगी खत्म कर ली। यह दर्शाता है कि आज की आधुनिक जीवनशैली में कहीं न कहीं लोग बहुत जल्दी ही हौसला हार रहे हैं और मौत को गले लगा रहे हैं।
22 साल का गोंविद( बदला हुआ नाम) अपने जीने की सारी उम्मीदें खो चुका था, वह नींद की गोलियां खाकर अपनी जान देने पर आमादा था। परिजन उसकी निगरानी करते लेकिन जैसे ही मौका मिलता वह आत्महत्या के कदम उठाने लग जाता। उससे परेशान होकर परिजन उसे काउंसिंग के लिए मानसिक स्वास्थ्य के ओपीडी में लेकर आए। गोविंद कोरोना काल में अपना व्यापार ठप होने से परेशान था, आर्थिक तंगी और घर की हालत उसे तनाव दे रही थी लेकिन इन समस्याओं का हल आत्महत्या तो नहीं हो सकती। इसी बात को लेकर डॉक्टरों ने उसकी काउंसिलिंग की, जरूरत के हिसाब से दवा दी और आज गोविंद वापस अपना व्यापार कर रहा है। और वह खुश है और उसके परिजन इस बात को स्वीकार करते हैं कि ऐसे मरीजो के लिए परामर्श बेहद जरूरी है।
गोविंद जैसे सैकड़ों मरीजों का इलाज कर चुके मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल रायगढ़ के मनोरोग विशेषज्ञ डॉ राजेश अजगल्ले बताते हैं, “आत्महत्या सिर्फ गरीबों को नहीं बल्कि सम्पन्न लोगों को भी मार रही है। जहां गरीब मजबूरी में अपनी जिंदगी खत्म कर रहा है तो जिन लोगों के पास सुख सुविधाएं हैं, वो मानसिक अवसाद के शिकार हो कर मौत को गले लगा रहे हैं। चाहे वो बड़े बड़े बिजनेसमैन हो या कोई बड़ी हस्ती। आखिर ऐसा क्यों है कि आत्महत्या की प्रवृति बढ़ती जा रही है? क्या जिंदगी अब पहले से मुश्किल होती जा रही है या अब आधुनिकता का बोझ या चकाचौंध से भरी जिंदगी हमें अंदर से खोखला करती जा रही है। आत्महत्या का सीधा संबंध हमारे मानसिक स्वास्थ्य से होता है। इस पर लोगों को ध्यान देना बहुत जरूरी है। मानसिक स्वास्थ्य पर असर कई तरीकों से पड़ता है। कहीं किसी को कर्ज की परेशानी है तो किसी को पारिवारिक, कहीं कोई प्रेम में फेल हो कर जिंदगी की लड़ाई हार रहा है तो कोई एग्जाम में फेल हो कर। कोरोना काल में घर में ज्यादा रहने से भी लोगों के बीच तनाव हो रहे हैं।“
जतन केंद्र के मानसिक स्वास्थ्य के काउंसलर अतीत राव कहते हैं, “शारीरिक रूप से मजबूत लग रहा इंसान भी दिमागी रूप से कमजोर हो रहा है और मानसिक तौर पर आज की पीढ़ी में एक खोखलापन आता जा रहा है। आज लोग समस्याओं से लड़ कर उन्हें खत्म करने की जगह खुद को खत्म करना आसान समझ रहे हैं। आज जरुरत है हमें खुद को अपनों से जोड़ने की, अपने परिवार के साथ समय बिताने की और कुछ भी दिल में आए तो उसे दूसरे के साथ साझा करने की। कहते हैं न कि खुशी बांटने से बढ़ती है और दुःख बांटने से कम होता है।“

मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोग हुए जागरूक : डॉ अजगल्ले
मेडिकल कॉलेज के मनोरोग विभाग के मनोचिकित्सक डॉ राजेश अजगल्ले बताते हैं, “कोविड काल और कोविड संक्रमित होने के बाद लोग मानसिक तनाव में ज्यादा हैं। घबराहट, नींद न आना, सुस्ती, खाने में मन नहीं लगना जैसी कई प्रकार की दिक्कते लोगों को हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि लोग अपने मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देने लगे हैं। पहले जहां जिला अस्पताल के मानसिक स्वास्थ्य के ओपीडी में 30 के करीब मरीज आते थे अब इनकी संख्या 70 के करीब प्रतिदिन हो गई है। सरकार द्वारा मानसिक रोगों के उपचार के लिए चलाई जा रही गतिविधियों का यह असर है कि लोग अब अपने मानसकि स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो रहे हैं। किसी भी कीमत पर हमें अपने मन को हारने नहीं देना है क्योंकि मन के हारे हार है और मन के जीते जीत। आत्महत्या के विचार आने पर एक बार अपने परिवार या किसी दोस्त या काउंसलर से बात ज़रूर कर लेना चाहिए।“

परिवार ने दी ताकत:-
सौरभ (बदला हुआ नाम) बताते हैं, “मेरी नौकरी चली गई, मैं नोएडा में मल्टी नेशनल कंपनी में काम कर रहा था। कई तरह के मासिक कर्ज हैं मुझ पर लेकिन नौकरी नहीं होने से वह बढ़ता ही जा रहा है। मैं अपनी समस्या को घर में नहीं बता रहा था कि घरवाले बेकार में परेशान हो जाएंगे। इसी बीच मन में आत्महत्या का भी कई बार ख्याल आया। फिर मेरे दोस्तों ने मुझे अपने घर जाने की सलाह दी। तब मुझे पता चला कि एक साथ रहने से बेहतर है जबकि अलग रहना गलत है। परिवार के साथ रहने से हर मुसीबत और परेशानी से लड़ने का हौसला मिलता है। दूसरा यह कि शायद भावनात्मक रूप से हम सब इतने कमजोर हो रहे हैं कि छोटी-छोटी असफलताएं भी हम नहीं संभाल पाते। बचपन से ही प्रतिस्पर्धा का ऐसा पाठ पढ़ाया जा रहा है कि छोटी सी असफलता मिलते ही लगता है कि जिंदगी खत्म हो गई है। अब मैं खुश हूं और धीरे-धीरे समस्याओं को सुलझा रहा हूँ । समय के साथ नौकरी भी मिल जाएगी लेकिन जिंदगी ज्यादा जरूरी है। “