छत्तीसगढ़

बिना मान्यता वाले निजी स्कूलों पर हाईकोर्ट सख्त, नए दाखिले पर रोक

रायपुर । छत्तीसगढ़ में बिना मान्यता संचालित निजी स्कूलों पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। शुक्रवार को चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस रविंद्र कुमार अग्रवाल की डिवीजन बेंच ने स्पष्ट आदेश जारी करते हुए कहा कि आगामी आदेश तक ऐसे स्कूलों में किसी भी नए छात्र का प्रवेश नहीं होगा।

कोर्ट ने यह भी निर्देश दिए कि जिन छात्रों का दाखिला पहले ही हो चुका है, उन्हें कक्षा से बाहर नहीं किया जाएगा। साथ ही कोर्ट ने रजिस्ट्रार को निर्देश दिया है कि भविष्य में ऐसी कोई याचिका स्वीकार न की जाए, जिसमें छात्रों के दाखिले रद्द करने की मांग की गई हो, ताकि अभिभावकों को अनावश्यक परेशानी न उठानी पड़े।

इस मामले में अगली सुनवाई की तारीख 5 अगस्त तय की गई है। जनहित याचिका विकास तिवारी द्वारा अधिवक्ता संदीप दुबे और मानस बाजपेई के माध्यम से दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया है कि प्रदेश में बड़ी संख्या में ऐसे निजी स्कूल संचालित हो रहे हैं जिन्हें सरकार से कोई मान्यता प्राप्त नहीं है।

इतना ही नहीं, कई स्कूल एक मान्यता प्राप्त स्कूल के नाम पर अलग-अलग शाखाएं खोलकर शिक्षा दे रहे हैं। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि शिक्षा विभाग की कार्रवाई सिर्फ औपचारिकता बनकर रह गई है, जहां महज 25 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर स्कूलों को पूरा सत्र संचालित करने दिया जाता है और इस बीच वे लाखों की फीस वसूल लेते हैं।

11 जुलाई को डीपीआई (निदेशक, लोक शिक्षण संचालनालय) द्वारा प्रस्तुत शपथपत्र में कहा गया कि नर्सरी से केजी-दो तक की कक्षाओं के लिए मान्यता आवश्यक नहीं है, जबकि कक्षा एक से ऊपर की कक्षाओं के लिए मान्यता जरूरी है।

हालांकि, याचिकाकर्ता के अधिवक्ताओं ने कोर्ट को सूचित किया कि राज्य शासन द्वारा 7 जनवरी 2013 को एक अधिसूचना जारी की गई थी, जिसमें नर्सरी से केजी-दो तक की कक्षाओं के संचालन के लिए भी मान्यता को अनिवार्य बताया गया था।

इस पर कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए शिक्षा सचिव को व्यक्तिगत शपथपत्र पेश करने का निर्देश दिया है और यह स्पष्ट किया कि डीपीआई द्वारा कोर्ट को गलत जानकारी क्यों दी गई, इसका जवाब उन्हें देना होगा।

हाईकोर्ट के इस आदेश से अब प्रदेश के हजारों निजी स्कूलों पर असर पड़ सकता है, जो बिना मान्यता के संचालित हो रहे हैं।

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