मोहम्मद रफी कल भी जिंदा था,आज भी है और कल भी जिंदा रहेगा-सिंहघोष के प्रबंध सम्पादक स्व.शशिकांत शर्मा “स्वतंत्र पत्रकार” जी की कलम से…।

महान रफी की पुण्य तिथि 31 जुलाई पर विशेष लेख
अपनी मृत्यु के 38 साल बाद भी पूरी दुनिया में आज भी यदि किसी की आवाज सर्वाधिक सुनाई देती है तो वह आवाज होती है आवाज के जादूगर मोहम्मद रफी की.आप टीवी पर कोई भी म्यूजिकल चैनल खोलें,रेडियो सुनें,हिंदी गीतों के आडियो कैसेट सुनें ऐसा हो ही नही सकता कि रफी साहब उसमें शामिल न हों.ऐसा कोई दिन हो ही नही सकता जब आपका दिन इस अज़ीम फनकार की आवाज सुने बिना निकल जाए.
आपके याद होगा कि बीती सदी के छठे-सातवें-आठवें दशक (1950 से 1980)
तक का वह सुनहरा दौर जब रफ़ी की आवाज का सम्मोहन सर चढ़कर बोलता था.हरेक कानो में रस घोलती थी उनकी शहद से भी मीठी आवाज़.
प्यार-मोहब्बत के गीत हों या दर्द भरे,शास्त्रीय,
मजाकिया,चुहलबाजी, छेड़-छाड़ वाले नगमे हों या भजन-कव्वाली रफ़ी की आवाज से शब्द ज़िंदा हो उठते थे,और लोगों के दिलों में बस जाया करते थे.शुरुआती दशक के दिनों फ़िल्म “चौदहवीं का चांद” का शीर्षक गीत आया- ‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो’ इस गीत ने ऐसा गजब किया कि हर जवान दिलों के मुंह पर अपने चांद(माशूका) के लिए यही गीत छा गया.
लिहाजा पहली बार मोहम्मद रफ़ी को इसी गीत के लिए फिल्म फेयर एवॉर्ड से नवाजा गया.
इसके बाद सन् 1961 में रफ़ी को अपना दूसरा फ़िल्म फेयर एवॉर्ड फ़िल्म “ससुराल” के गीत ‘तेरी प्यारी प्यारी सूरत को’ के लिए मिला.
1965 में लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में फ़िल्म “दोस्ती” के लिए गाए गीत ‘चाहूंगा मै तुझे सांझ सवेरे के’ लिए रफ़ी को तीसरा फ़िल्म फेयर पुरस्कार मिला.
साल 1965 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा.साल 1966 में फ़िल्म “सूरज” का गीत
‘बहारों फूल बरसाओ’ बहुत प्रसिद्ध हुआ और इसके लिए उन्हें चौथा फ़िल्म फेयर एवॉर्ड मिला. साल 1968 में शंकर जयकिशन के संगीत निर्देशन में फ़िल्म “ब्रह्मचारी” के गीत ‘दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर’ के लिए उन्हें पांचवां फ़िल्मफेयर एवॉर्ड मिला.1977 में छठा और अंतिम फिल्म फेयर एवॉर्ड उन्हें फ़िल्म “हम किसी से कम नही” में गाये गीत ‘क्या हुआ तेरा वादा’ के लिए मिला.
रफी का सफरनामा यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि मोहम्मद रफी ने दो शादियां की थी.उन्होंने अपनी पहली शादी की बात जमाने भर से छिपाकर रखी थी.बस उनके घरवाले जानते थे. यह बात शायद पता भी नहीं चलती अगर रफी की पुत्रवधू यास्मीन खालिद की पुस्तक बाजार में ना आती.यास्मीन की प्रकाशित पुस्तक ”मोहम्मद रफी मेरे अब्बा..एक संस्मरण” में इस बात का जिक्र किया गया है.इसमें लिखा है कि तेरह साल की उम्र में रफी की पहली शादी उनके चाचा की बेटी बशीरन बेगम से हुई थी.
लेकिन कुछ साल बाद ही उनका तलाक हो गया था.
इस विवाह से एक बेटा सईद हुआ था.उनके इस पहले विवाह के बारे में घर में सभी को मालूम था. लेकिन बाहरी लोगों से इसे छिपा कर रखा गया था. घर में इस बात का जिक्र करना भी मना था क्योंकि रफी की दूसरी बीवी बिलकिस बेगम इसे नापसंद करती थी और उन्हें बर्दाश्त नहीं था कि कोई इस बारे में बात भी करे.यदि कभी कोई इसकी चर्चा करता भी था,तो बिलकिस बेगम और रफी के साले जहीर बारी इसे अफवाह कहकर बात को वहीं दबा देते थे.
यास्मीन रफी लिखती हैं कि वह समझ नहीं पाती थीं कि इस बात को छिपाने की क्या जरूरत है.1944 में बीस साल की उम्र में रफी की दूसरी शादी सिराजुद्दीन अहमद बारी और तालिमुन्निसा की बेटी बिलकिस के साथ हुई. जिनसे उनके तीन बेटे खालिद,हामिद और शाहिद तथा तीन पुत्रियां परवीन अहमद,नसरीन अहमद और यास्मीन अहमद हुईं. रफी साहब के तीन बेटों सईद,खालिद और हामिद की मौत हो चुकी है. खालिद और हामिद की मृत्यु दिल का दौरा पड़ने से हुई थी,और सईद की कार दुर्घटना में मौत हुई.
रफ़ी और नौशाद की जोड़ी :- बात 1944 की थी जब मोहम्मद रफी नौशाद साहब के नाम उनके एक करीबी का सिफारशी पत्र लेकर मुंबई आ गए थे.नौशाद ने इस पत्र का आदर किया और रफ़ी की आवाज सुनी. सुनकर वो ऐसे मदहोश हुए कि उन्हें लगा मानो कोई फरिश्ता उनके सामने गा रहा हो.नौशाद ने रफ़ी को हिन्दी फिल्म ‘पहले आप’ में गवाया और इस गाने के लिए रफी को 50 रुपये मेहनताना दिए.यहां से शुरू हुआ रफी का संघर्ष शानदार सफर.वैसे रफी ने अपने जीवन का पहला गीत पंजाबी फिल्म “गुल बिलौच” में ‘सोणिये नी हिरिये तेरी याद ने बहुत सताया’ संगीतकार जोड़ी ‘हुशनलाल भगतराम’ के निर्देशन में गाया था.रफी को पहली सफलता मिली फिल्म “जुगनू” के गीत ‘यहां बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है’ से.और “सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी” के बाद तो देखते ही देखते कोटला सुल्तान सिंह का ‘फीकू’ अब ‘मोहम्मद रफी’ बन चुका था,जिसमें नौशाद साहब की अहम भूमिका थी.
मोहम्मद रफ़ी लाजवाब फनकार गायकी का आफ़ताब,
जिसकी शराफत-सादगी-नेकदिली का नही कोई जवाब.
संगीतकार-मरहूम नौशाद अली साहब
गीतकार- म.शकील बदायूंनी साहब
गायक-मरहूम मो.रफ़ी साहब
अभिनेता-दिलीपकुमार साहब
ये चारों अपने अपने क्षेत्र के महारथी थे.जब जब इन चारों अज़ीम फनकारों ने साथ मिलकर कोई रचना की तो वह भूत काल,
वर्तमान,भविष्य काल का अमर शाहकार बन गई.
इन पर विशद चर्चा आगे करते रहूँगा.
फिलवक्त रफ़ी साहब के हज़ारों कालजयी गीतों में से 20 चुनिंदा गानों को पेश कर रहा हूँ रफ़ी की आज 39 वीं बरसी पर उनको श्रद्धा सुमन के बतौर.
मखमली आवाज के शहंशाह रफी साहब ने नायक दिलीप कुमार,भारत भूषण, प्रदीपकुमार,राजेंद्र कुमार,
धर्मेंद्र,जितेंद्र,शम्मी कपूर,
राजकुमार,मनोज कुमार,
विश्वजीत,जाय मुखर्जी,
मनोज कुमार,देवानंद,
राजेश खन्ना,गुरुदत्त
शशिकपूर,ओमप्रकाश,
महमूद,जॉनीवाकर
जिसके लिए भी गाया दर्शकों/श्रोताओं को सदैव यही प्रतीत हुआ कि रफी नही ये हीरो खुद गा रहे हैं.किसी भी पात्र से उसकी आवाज में अपनी आवाज मिला देने की रफी को खुदा की जबरदस्त नियामत हासिल थी.
फ़िल्म “अपनापन” में एकदम अनजाने पात्र के लिए हु-ब-हु उसकी आवाज़ में ‘आदमी मुसाफिर है,आता है जाता है” ,फ़िल्म “दोस्ती” में गुमनाम से छोकरों के लिए ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ ,’राही मनवा दुख की चिंता क्यों सताती है’ ,’मेरा तो जो भी कदम है’ ,’कोई जब राह न पाए,मेरे संग आये एवं “कुंवारा बाप”, के एक एक्स्ट्रा कलाकार को ‘सज रही डोली मेरी माँ,सुनहरे गोटे में’ को अपना स्वर देकर इन गीतों-कलाकारों को अमर कर दिया.
मो.रफी का ही यह कमाल था की उन्होंने पृथ्वीराज-राजकपूर-ऋषिकपूर यानी कि 3 पीढ़ियों को अपनी आवाज दी.यदि उनका मात्र 56 वर्ष की अल्पायु में ही इंतकाल नही होता तो निसंदेह वे चौथी पीढ़ी के लिए भी गाते.यहां तक कि महान गायक “किशोर कुमार” तक के लिए रफी ने फ़िल्म “शरारत” में ‘तूने हमें क्या दिया ज़िंदगी’ का गीत गाकर अपना लोहा मनवा लिया.सभी भारतीय भाषाओं में एवं अंग्रेजी सहित अन्य कई विदेशी भाषाओं में भी लगभग 25 हजार गीत गाने वाले कुदरत के इस अद्भुत कलाकार,मौसिकी के सम्राट के फिलवक्त बेहद चुनिंदा गीत पेश हैं.
- “चले आज हम जहाँ से,
हुई ज़िन्दगी पराई,
तुम्हें मिल गया ठिकाना,
हमें मौत भी ना आई,
ओ दूर के मुसाफिर,हमको भी साथ ले ले,
हम रह गए अकेले.”
फिल्म-उड़न खटोला
सभी चारों फनकार. - “हाँ तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे,
जब कभी भी सुनोगे गीत मेरे संग संग तुम भी गुनगुनाओगे”.
फिल्म-पगला कहीं का
संगीतकार-शंकर जयकिशन
गीतकार-हसरत जयपुरी
अभिनेता-शम्मीकपूर - “ओ दुनिया के रखवाले,
सुन दर्द भरे मेरे नाले.”
फिल्म-बैजू बावरा
नायक-भारत भूषण
सभी तीनों फनकार - “कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों”.
फिल्म-हक़ीक़त
गीतकार-कैफ़ी आज़मी
संगीतकार-मदन मोहन - “मैं ये सोच कर उसके दर से उठा था,के वो रोक लेगी,
मना लेगी मुझको”.
यथावत 4 नं. - “लगता नही है दिल मेरा मेरा उजड़े हुए दयार में”.
फिल्म-लाल किला
गीतकार-अंतिम मुग़ल शहंशाह बहादुर शाह ज़फर - “न किसी की आँख का नूर हूँ,
न किसी के दिल का करार हूँ”.
यथावत 6 नं. - “सबके रहते लगता है मुझको,
कोई नहीं है मेरा,
सूरज को छूने निकला था,आया हाथ अँधेरा”.
फिल्म-समझौता
अभिनेता-अनिल धवन - “मैंने चाँद और सितारों की तमन्ना की थी,
मुझको रातों की स्याही के सिवा कुछ ना मिला”.
फिल्म-चंद्रकांता
गीतकार-साहिर लुधियानवी - “तूझे क्या सुनाऊं ए दिलरुबा,
तेरे सामने मेरा हाल है”.
फिल्म-पहली नज़र - “कल चमन था आज इक सहरा हुआ,
देखते ही देखते ये क्या हुआ.”
फिल्म-खानदान
गीतकार-राजेंद्र कृष्ण
संगीतकार-रवि
नायक-सुनीलदत्त
नायिका-नूतन
फिल्मांकन-बैक ग्राउंड - “सुनो सुनो ए दुनिया वालों बापू की ये अमर कहानी”.
फिल्म-बापू की अमर कहानी
गीतकार-राजेंद्र कृष्ण - “हम तुमसे जुदा हो के,
मर जायेंगे रो रो के”.
फिल्म-एक सपेरा एक लूटेरा
नायक-फ़िरोज़ खान
गीतकार-असद भोपाली - “सौ बार जनम लेंगे,सौ बार फ़ना होंगे,
ए जाने वफ़ा फिर भी हम तुम न जुदा होंगे”.
फिल्म-उस्तादों के उस्ताद - “न आदमी का कोई भरोसा,
न दोस्ती का कोई ठिकाना”.
फिल्म-आदमी
बाकी सभी चारों महारथी
सहनायक-मनोज कुमार - “पत्थर के सनम तुझे हमने
मोहब्बत का खुदा माना”.
फिल्म-पत्थर के सनम
संगीतकार-लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल
नायक-मनोज कुमार - “चल उड़ जा रे पंछी के ये देश हुआ बेगाना”.
फिल्म-भाभी
गीतकार-राजेंद्र कृष्ण - “जहाँ डाल डाल पे सोने की चिड़िया करती हैं बसेरा,
वो भारत देश है मेरा”.
फिल्म-सिकंदर-ए-आज़म
गीतकार-भरत व्यास
नायक-पृथ्वीराज कपूर - “ये महलों,ये तख़्तों-ताजों की दुनिया,
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है”.
फिल्म-प्यासा
गीतकार-साहिर लुधियानवी
संगीतकार-एस.डी.बर्मन
नायक-गुरुदत्त - “आज गा लो मुस्कुरा लो,
महफ़िलें सजा लो.”
फिल्म-ललकार
मल्टी स्टारर फिल्म
नोट मैं कभी भी गूगल बाबा की शरण नही लेता हूँ और न ही इसका इस्तेमाल करना मुझे आता है.
सब कुछ स्मरण शक्ति के आधार पर फटाफट लिखते जाता हूँ.
अतः गलतियां होना भी स्वाभाविक है
कुछ त्रुटियां होँगी ही.उसके लिए अग्रिम खेद-क्षमा प्रार्थी.
और रुखसत हो गया महान गायक रफी
31 जुलाई 1980 माहे पाक रमजान का वो हृदय विदीर्ण कर देने वाला दिन
जिस रफ़ी ने अपने लाखों-करोड़ों मुरीदों के कानों में जादू घोला था वे उसकी अंतिम यात्रा के दिन फफक पड़े थे अज़ीम मौसिकार नौशाद साहब ने बाद में उन्होंने इस दिन को याद करते हुए कहा था कि -”रमजान में मोहम्मद रफी का इंतेकाल हुआ था और रमजान के अलविदा के दिन बांद्रा की बड़ी मस्जिद में उनकी नमाजे जनाजा हुई थी.पूरा ट्रैफिक जाम था.क्या हिंदू,क्या सिख, क्या ईसाई,हर कौम सड़कों पर आ गई थी.
जो नमाज में शरीक थे उनमें राज कपूर,राजेन्द्र कुमार,सुनील दत्त जैसे नामचीन स्टार के अलावा इंडस्ट्री के तमाम लोग मौजूद थे.हर मजहब के लोगों ने उनको कंधा दिया.”
अंतिम यात्रा के दिन लोगों का जो हुजूम उमड़ा वो मोहम्मद रफ़ी क्या था यह बयान कर रहा था.यहां तक की आसमान भी रो पड़ा था.पूरी यात्रा के दौरान पानी गिरता रहा.प्रकृति भी मानो अपने महान गायक को अलविदा कह रही थी.मगर उनकी रूह हर दिल को कह रही थी- तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे