रायगढ़

हर व्यक्ति को होनी चाहिए बेसिक लाइफ सपोर्ट की जानकारी…।छात्रों के लिए बेसिक लाइफ सपोर्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन…।।

सीपीआर को हर व्यक्ति को सिखाने के लिए प्रयास करेंगे : डॉ. मनोज गोयल

सिंहघोष/रायगढ़ 18 अक्टूबर 2022, हादसे के बाद लोगों में चीख पुकार मच जाती है और तनाव के क्षण में लोग धैर्य खो देते हैं। जब तक उनके पास मेडिकल सपोर्ट पहुंचती है उनमें से कुछ ऐसे लोग की जान चली जाती है जिन्हें सामान्य तरीके से सांस देकर और छाती दबाने इत्यादि से बचाया जा सकता है। इन्हीं तकनीक को बेसिक लाइफ सपोर्ट कहते हैं। बेसिक लाइफ सपोर्ट का प्रशिक्षण यदि अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचे तो हादसे के बाद कई लोगों की जान बच सकती है। विदित हो कि नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार प्रदेश में साल 2021 में 12,395 सड़क हादसों में 5,413 लोगों की मौत हुई है।

इसी बेसिक लाइफ सपोर्ट को समझाने के लिए अपेक्स हॉस्पिटल में विश्व एनेस्थीसिया दिवस के अवसर पर प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। कार्यक्रम मुख्य रूप से नर्सिंग कॉलेज के छात्रों के लिए लायंस क्लब प्राइड और एपेक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के द्वार आयोजित किया गया था।

इस दौरान कार्यक्रम की संचालक डॉ. स्नेहा चेतवानी ने बताया: “ किसी भी प्रकार की दुर्घटना के बाद के शुरुआती कुछ मिनट घायल की जीवन रक्षा के दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं । इस दौरान अगर घायल को बेसिक लाइफ सपोर्ट मिल जाता है तो उसके बचने की संभावना काफी बढ़ जाती है । मेडिकल लाइन से जुड़े होने के कारण नर्सिंग के छात्र जल्दी प्रशिक्षित हो जाते हैं और अपने इर्द गिर्द के लोगों को भी इसके बारे में जानकारी दे सकते हैं और उन्हें प्रशिक्षित कर सकते हैं। इस प्रशिक्षण का दायरा जितना अधिक बढ़ेगा , दुर्घटना ग्रस्त घायलों के जीवन रक्षा की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाएगी। प्रत्येक दुर्घटना स्थल पर प्रशिक्षित मेडिकल स्टॉफ का पहुंचना मुमकिन नहीं होता । ऐसी स्थिति में अगर आम लोगों को भी बेसिक लाइफ सपोर्ट प्रशिक्षण दिया जाय तो यह एक क्रांतिकारी कदम साबित होगा।“

कार्यक्रम में अतिथि वक्ता मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग के एचओडी प्रोफेसर ए.एम.लकड़ा और डॉक्टर नीतीश नायक थे। इस मौके पर डॉ. लकड़ा ने बताया: “जीवन रक्षा के सबसे महत्वपूर्ण उपचारों में से एक है बेसिक लाइफ सपोर्ट। जीवन के लिए सांस और खून का प्रवाह। किसी हादसे के बाद मरीज की पल्स सांस न आए, नाक से गर्म हवा नहीं तो हम उसकी छाती को स्वंय के वजन से तकनीक से बाहरी तौर पर दबाने का प्रयास करते हैं जिससे ह्रदय फिर से गतिमान हो सके। इसी तरह श्वसन में दिक्कत हो तो उसे कृत्रिम स्वांस देते हैं जिससे समय रहते उसकी जान बचाई जा सके। फिर जब मेडिकल की टीम जब आए तो वह उसे आगे का उपचार देगी लेकिन सबसे पहले हादसे या हार्ट अटैक के बाद अगर जरूरत हो तो बेसिक लाइफ सपोर्ट देना चाहिए।“

कार्यशाला की प्रशिक्षक डॉ. निधि असाटी और डॉ. अरविंद यादव थे। डॉक्टर नीतीश नायक ने एनेस्थीसिया और बी एल एस के इतिहास पर और इसके महत्व को बताया। डॉ निधि असाटी ने पावर प्वाइंट प्रेजेंटेशन और डमी के माध्यम से ने बीएलएस को विस्तार और बारीकी से जानकारी दी। कार्यक्रम के आयोजक लायंस क्लब प्राइड की अध्यक्ष डॉ स्नेहा चेतवानी और एपेक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल की निदेशक डॉ रश्मि गोयल थी ।

सभी को आना चाहिए सीपीआर: डॉ. मनोज गोयल
अपेक्स हॉस्पिटल के डॉ. मनोज गोयल ने बताया: “कार्डियो-पल्मोनरी रिससिटैशन (सीपीआर) इमरजेंसी की हालत में इस्तेमाल की जाने वाली एक मेडिकल थैरेपी की तरह है। जिससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। इससे कार्डियक अरेस्ट और सांस न ले पाने जैसी आपातकालीन स्थिति में व्यक्ति की जान बचाई जा सकती है। सीधे शब्दों में कहे तो कई बार किसी व्यक्ति की अचानक सांस रुक जाती है या फिर कार्डिएक अरेस्ट की स्थिति में किसी को सांस नहीं आता है तो सीपीआर दिया जाता है। जिसकी वजह से लोगों की जान बचाई जा सकती है। एक तरह से सीपीआर में बेहोश व्यक्ति को सांसें दी जाती हैं, जिससे फेफड़ों को ऑक्सीजन मिलती है। साथ ही इससे शरीर में पहले से मौजूद ऑक्सीजन वाला खून संचारित होता रहता है। हम आने वाले दिनों में प्रयास करेंगे कि इस तकनीक से अधिक-अधिक लोगों को प्रशिक्षित किया जा सके।“

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