रायगढ़

एस.ई.सी.एल.छाल कोयला खदान की गैर-कानूनी जन-सुनवाई सम्पन्न- सुश्री सविता रथ

सिंहघोष/रायगढ़- भयंकर प्रदूषण की मार झेल रहे रायगढ़ जिले में नियम कायदों की धज्जियां उड़ाते हुये जन सुनवाईयां सम्पन्न कराना कोई नई बात नही है।

एक तरफ देश में पर्यावरणीय मामलों की सर्वोच्च न्यायायिक संस्था एन जी टी ने जिले को उसकी लगातार बिगड़ते पर्यावर्णीय स्थिति और तेजी से घटते वन क्षेत्रों को लेकर रेड जोन में डाल दिया है। दूसरी तरफ जिले का प्रशासन इस गम्भीर मसले को नजरअंदाज कर पिछले कुछ सालों में प्रतिवर्ष औसतन 10 से 12 आद्योगिक या खदान विस्तार हेतु जनसुनवाईयों को सम्पन्न करा रहा है।

अब तक जिले में स्थापित निजी कंपनियों पर ही एन जी टी के आदेशों की अवहेलना कर फ़र्ज़ी ई आई ए रिपार्ट के आधार पर जनसुनवाईयां सम्पन्न कराने का आरोप लगता रहा है। इस बार सरकारी कंपनी एसइसीएल की छाल कोयला खदान विस्तार के लिये आयोजित जन सुनवाई में भी पर्यावरणीय मामलों की सर्वोच्च अदालत एनजीटी के आदेश की भी घोर अवमानना की गई है।

उक्त जनसुनवाई के विरुद्ध आवाज उठाने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं में से एक सुश्री सविता रथ ने बताया कि शिवपाल भगत बनाम भारत सरकार प्रकरण में 20 नवंबर 2020 को जारी आदेश द्वारा रायगढ़ जिले के खदान प्रभावित क्षेत्र तमनार,घरघोड़ा धर्मजयगढ़ तहसील में नये उद्योग कोयला खदान के विस्तार या भूमिगत से ओपन कास्ट माइनिंग पर पूरी तरह से रोक लगा दी गई है। दो साल के बृहद पर्यावरणीय अध्ययन जरुरी कर दिया गया। यही कारण है कि अडानी की गारे-पेलमा सेक्टर 2 कोयला खदान को जन सुनवाई के डेढ़ साल बाद तक भी स्वीकृति नहीं मिल पाई है। हिंडाल्को को अपनी भूमिगत खदान को खुली खदान करने का प्लान छोड़ कर खदान ही सरेंडर करना पड़ा। इसके बावजूद secl की खदान विस्तार की जनसुनवाई किया जाना समझ से परे है। यही नहीं इनकी इआईए में दिये गये पर्यावरणीय आंकड़े भी चार साल पुराने हैं। इस तरफ किसी ने ध्यान ही नही दिया। जबकि हाथी सबका सांथी नाम की सामाजिक संस्था के कार्यकर्ता सजल कहते है secl की ईआईए रिपोर्ट बिलकुल झूठी है। उन्होंने प्रस्तावित खदान वाले इस हाथी प्रभावित क्षेत्र से उन्होंने हाथी जैसे जीव को गायब कर दिया है। जबकि जनचेतना के राजेश त्रिपाठी कहते है इस जनसुनवाई से करीब 150 हेक्टेयर जंगल और करीब 450 हेक्टेयर खेती बाड़ी नष्ट हो जाएगी।

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