लोकतंत्र में किसी भी राजनीति पार्टी की सरकार पूरा देश नहीं होती। लेकिन उस वक्त की सरकार की नीतियों और फैसलों से देश का भविष्य जरूर बनता-बिगड़ता है।।

वरिष्ठ पत्रकार -नितिन सिन्हा (संकलित लेख)
सिंहघोष-03.08.25
एक पत्रकार का धर्म है कि वो चुनी हुई सरकार से सवाल पूछे,,
सवाल वो हो जो सीधे देश हित से जुड़ा हो और जिसका प्रभाव_दुष्प्रभाव आम जनता पर पड़ता हो???
लेकिन नए भारत में जब से कथित राष्ट्रवादी सरकार का शासन शुरू हुआ है,,पत्रकारिता के लिए सरकार से सवाल करना देशद्रोह और विपक्ष से जवाब मांगना राष्ट्रधर्म की श्रेणी का मुद्दा बन गया है।। ये सब अचानक में नहीं हुआ है,,इसकी परिपाटी वर्ष 2010/11 से लिखना शुरू कर दिया गया था।। जब मीडिया घरानों की बैकडोर से खरीदी की गई थी। उन्हें उनकी सोच से नहीं अधिक पैसे दिए गए थे।। यह सबकुछ मुट्ठीभर अरबपति कारोबारियों ने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए किया था। जिसके तहत एक राज्य विशेष के दो असफल और अयोग्य राजनेताओं को चुना गया,जिनकी अपनी पृष्ठभूमि दागी थी और वो इन कारोबारियों के इशारों पर नाचने को तैयार थे।। लक्ष्य था देश की राष्ट्रीय संपत्तियों और खनिज संपदा पर अरबपतियों को एकाधिकार प्राप्त करना तथा विदेशी व्यापार में भी अपना वर्चस्व बनाना था।। विगत वर्षों में ऐसा हुआ भी,, इसके लिए इन दिनों अयोग्य और शातिर नेताओं को ऐसाभावी हिंदू लीडर दिखाकर आम जनता के सामने खरीदी हुई मीडिया हाउस के माध्यम से प्रस्तुत किया गया,जिनके पास कोई जादू की छड़ी थी,जो महज 100 दिन के शासन में विदेशों में जमा अरबों का काला धन लाकर हर भारतीय नागरिक को 15/15 लाख रु दे सकते थे,जो 70 रु प्रति लीटर के पेट्रोल की कीमत घटा कर 35 रु कर सकते थे,,450 रु का गैस सिलेंडर 200 रु,2 करोड़ बेरोजगारों को हर साल नौकरी देने के अलावा,खाने पीने से लेकर दवाइयों को सस्ती कर सकते थे। जिनके सत्ता के रहने से pok पाकिस्तान से और मानसरोवर चीन से वापस छीना जा सकता था। देश के मुस्लिमों को पाकिस्तान और बांग्ला देश भेजा जा सकता था।। रुपया को डॉलर के मुकाबले ऐतिहासिक बढ़त दिलाई जा सकती थी।। महज 3 साल की भावी सत्ता में देश विश्व गुरु बनाया जा सकता था।।
लेकिन ऐसा हुआ क्या यह आपसे बेहतर और कौन जान सकता है??
आज जब देश की 70 फीसदी से अधिक सम्पत्ति उन अरबपतियों की हो चुकी है,और बहुत से इनके करीबियों ने छप्पर फाड़ कर दौलत जमा कर ली है,,तो आज उन्हीं दो जादूग चेहरो का रंग स्याह पड़ने लगा है।।। अब इनकी विफलताओं का दोष स्व. नेहरू जी से लेकर सरदार पटेल जी और इंदिरा जी पर थोपा जा रहा है।।
सत्ता में किसी तरह से भी बने रहने के लिए ये दो चेहरे खुलेआम असंवैधानिक और अमर्यादित काम करने लगे है,लेकिन बावजूद इसके सत्ता की रस्सी इनके हाथों से मुठ्ठी में बंद रेत की तरह सरकने लगी है। इन्हें ब्रांड बनाने वाले सेठों ने भी किनारा करना शुरू कर दिया है।। ऐसे में दोनों धूर्त नेता झूठ और चालाकी को अंतिम हथियार बनाकर इस्तेमाल करने में लगे है।। पुलवामा की घटना को राजनीतिक सफलता में भुनाने के बाद पहलगाम की घटना को चुनाव जीतने का मुद्दा बनाया गया।। उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि इस बार पासा उल्टा पड़ने वाला है।। आतंकी हमले से चुनाव जीतने की कोशिश के बीच “जाति नहीं धर्म पूछकर मारा” की असफलता के बाद “आपरेशन सिंदूर” आ गया।।
आपरेशन सिंदूर के दौरान पूरे देश ने यहां तक कि इनके अंध समर्थकों ने भी अपनी आंखों से देखा कि सर्वोच्च सत्ता में बैठे इन दो लोगों में कितनी धूर्तता और अक्षमता है।। इनके नेतृत्व में किस तरह हमारी सेना और देश की वैश्विक छवि को बड़ा नुकसान हुआ है.?? देश का नेतृत्व सिर्फ एक अरबपति सेठ को अमेरिकी दंड से बचाने के लिए न केवल अपने पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान बल्कि अमेरिका के आगे पूरी तरह से नतमस्तक हो चुका है।।
यही वजह है कि सरकार और उसके मंत्री खुलेआम झूठ बोलकर आपरेशन सिंदूर की असलियत से बचने की कोशिश में हैं।
लेकिन अब सरकार का यह झूठा बचाव देश के सैनिकों के सम्मान के आड़े आने लगा है इसलिए यह तीन सवाल पूछना जरूरी हो गया है??
1.आपरेशन सिंदूर में सेना की इच्छा के विरुद्ध एक तरफा युद्धविराम क्यों किया??
2.युद्धविराम की घोषणा पहले अमेरिका ने क्यों की,अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के 25 बार के बयानों का खंडन या विरोध क्यों नहीं किया??
- आपरेशन सिंदूर में हमारे कितने विमानों की क्षति हुई और कितने जवान शहीद हुए,इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा??
हालाकि भरी संसद में फिर एक बार धूर्त नेतृत्व के दबाव में रक्षामंत्री ने खुलेआम झूठ बोला।। हमारा कोई जवान शहीद नहीं हुआ,न ही हमें कोई क्षति हुई.
ऐसे में गूगल के अनुसार,,,
ऑपरेशन सिंदूर में भारत ने कुल 5 सैनिक खो दिए.
इन शहीद सैनिकों के नाम हैं: _
1.दिनेश कुमार शर्मा,, लांसनायक, हरियाणा के पलवल जिले के नगला मोहम्मदपुर गांव के निवासी थे। वे 5 फील्ड रेजिमेंट में जम्मू-कश्मीर के पुंछ में तैनात थे.
2.सुनील कुमार: इंडियन आर्मी की लाइ लाइट इन्फेंट्री का हिस्सा थे और जम्मू के आर एस पूरा सेक्टर में तैनात थे.
3.मोहम्मद इम्तियाज जम्मू कश्मीर
4.मुरली नाइक: आंध्र प्रदेश से थे और पाकिस्तान के खिलाफ इस ऑपरेशन के दौरान शहीद हो गए.
5 नाम उपलब्ध नहीं है।।
कारगिल युद्ध के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है कि देश अपने शहीद सैनिकों के नाम जानने में भी असमर्थ है।। जिसका सीधा अर्थ है कि इस गैर जिम्मेदार सरकार को अपने देश के शहीद सैनिकों के सम्मान की चिंता भी नहीं है।।
गूगल के अनुसार हालांकि, सेना ने 5 सैनिकों के शहीद होने की पुष्टि की है, लेकिन सभी के नाम सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। कुछ सूत्रों ने उन 5 शहीद सैनिकों को “सहकर्मी और भाई” कहकर श्रद्धांजलि दी है,जिन्होंने ऑपरेशन सिंदूर में सर्वोच्च बलिदान दिया है।
ऑपरेशन सिंदूर नामक भारतीय सेना के ऑपरेशन और उसमें शहीद हुए भारतीय सैनिकों के बारे में सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी बहुत सीमित है। जो नाम और विवरण दिए गए हैं, वे कुछ अनौपचारिक स्रोतों या अटकलों पर आधारित हो सकते हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि आधिकारिक सैन्य अभियानों और उनमें होने वाली क्षति के बारे में जानकारी अक्सर संवेदनशील होती है और इसे सार्वजनिक नहीं किया जाता है। इसलिए, यदि ऑपरेशन सिंदूर वास्तव में हुआ था, तो इसमें शामिल सभी सैनिकों के नाम और विवरण शायद सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध न हों।
अगर यह एक काल्पनिक ऑपरेशन है, तो इसमें शहीद हुए सैनिकों के नाम भी काल्पनिक होंगे।
यद्यपि गूगल में आठ भारतीय सैनिकों की इमेज भी उपलब्ध है।
इधर सेना के एक पूर्व अधिकारी ने भरे मंच से घोषणा की है कि रक्षा मंत्री ने पूरे देश के सामने झूठ बोला है,,उन्हें शहीदों के परिवार वालों से तथा देश की जनता और विपक्ष से माफी मांगनी चाहिए।। ये सरकार की निर्लज्जता और असफलता है कि उसे अपने शहीद सैनिकों की पहचान नहीं है?? ऐसी सरकार देश के सैनिकों और उनके पीड़ित परिवार वालो के सम्मान की क्या चिंता करेगी??वो तो उन्हें शहीद भी नहीं मान रही है। जबकि आपरेशन सिंदुर में हमारे 10 जांबाजों ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया है,और उनका परिवार शहीद का सम्मान पाने के लिए तरस रहा है।।
विचार आपको करना है,कि भारतीय सेना का यह अधिकारी झूठ बोल रहा है या सरकार का असफल रक्षामंत्री राजनाथ सिंह,,हमारा मानना यह है कि सैनिक झूठ नहीं बोलते।।
और देश के सैनिकों के बलिदान को हमेशा सम्मान दिया जाना चाहिए,चाहे वे किसी भी ऑपरेशन का हिस्सा रहे हों।
संकलित लेख-नितिन सिन्हा
सम्पादक
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