रायगढ़

एमसीएच : कोरोना मरीजों को दे रहा जीवनदान ठीक हुए मरीज पत्र लिखकर जता रहे एमसीएच का आभार,पत्र हुए वायरल

गर्भवती कोरोना संक्रमित महिलाओं के इलाज को एमसीएच बना वरदान
मरीज की इलाज के साथ मोटिवेट भी करते हैं :-डॉ.वेद प्रकाश घिल्ले

सिंहघोष/रायगढ़-
` मैं इस पत्र के माध्यम से लोगों को यह संदेश देना चाहती हूं कि निजी अस्पतालों में लाखों रूपये खर्च करने के बजाय सरकारी अस्पतालों पर भरोसा करें, यहां निस्वार्थ सेवा की जाती है।‘’यह शब्द निरुपमा गुप्ता, ग्राम खर्रा, तमनार के निवासी के है जो 13 से 21 मई तक रायगढ़ के मदर एण्ड चाइल्ड अस्पताल (एमसीएच) में भर्ती थी। नौ माह की गर्भवती निरुपमा कोविड की गंभीर अवस्था में अस्पताल में आई थी।

“हम पहले प्राइवेट (निजी) अस्पताल में इलाज करवाना चाहते थे क्योंकि निजी अस्पताल में अच्छा इलाज होता है यह मन में धारणा थी लेकिन किसी भी निजी अस्पताल ने हमें इलाज करने से मना कर दिया। तभी मुझे एमसीएच रायगढ़ ने सहारा दिया। यहां निजी अस्पतालों से अच्छी सेवा दी जाती है।‘’

निरूपमा के इस आभार पत्र, डेडिकेटेड कोविड अस्पताल- मातृ एवं शिशु अस्पताल के स्टाफ में ऊर्जा भर दिया है और सोशल मीडिया में इस पत्र को खूब प्रशंसा मिल रही है। ऐसे कई पत्र मरीजों ने ठीक होने के बाद लिखे हैं और यहां का आभार जताया है।

“यहां के डॉक्टर वेद प्रकाश घिल्ले, डॉ. सिद्दार्थ बेहरा एवं समस्त डॉक्टर-स्टाफ-नर्स व कर्मचारियों का दिल से आभार व दिल से धन्यवाद करना चाहती हूं। हम आप लोगों की सेवा का कोई मूल्य नहीं चुका सकते। हम भगवान से प्रार्थना करते हैं कि आप एवं आपका पूरा परिवार स्वस्थ्य एवं दीर्घायु हो।‘’ ।“

एमसीएच में मार्च 2020 में सबसे पहले कोविड संभावितों की स्क्रीनिंग और फिर इसी साल 18 मई को पहला मरीज भर्ती हुआ। 100 बिस्तरों का यह डेडिकेटेड कोविड अस्पताल मरीजों से हमेशा भरा होता है। हर कोविड से संक्रमित मरीज यहां आकर अपना इलाज करवाना चाहता है। एमसीएच ने अपने बेहतर इलाज और सरकारी व्यवस्था में लोगों की जान बचाने के कारण पूरे राज्य में अलग छाप छोड़ी है। यहां दीगर जिलों से गंभीर रूप से बीमार मरीज आते हैं। 40-50 फीसदी ऑक्सीजन सेचुरेशन वाले मरीज यहां से स्वस्थ्य होकर लौटे हैं। एमसीएच लोगों में अब एक भरोसा बन गया है। यहां से मरीज स्वस्थ्य होकर लौट रहे हैं और अपना अनुभव लोगों में साझा कर रहे हैं।
एमससीएच में जिले का एकमात्र कोविड संक्रमित मरीजों के लिए डायलिसिस यूनिट है। सरकारी अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए डायलिसिस राज्य के कम ही जिलों में है। यह रायगढ़ जिले के लिए वास्तव में सौभाग्य की बात है।

निरूपमा का इलाज करने वाले स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. बिस्मय षड़ंगी बताते हैं “जब निरूपमा यहां आईं थी जब उनकी स्थिति काफी गंभीर थी। वह गर्भ से थीं तो उन्हें हम ज्यादा दवा नहीं दे सकते क्योंकि बच्चे के स्वास्थ्य पर ज्यादा दवाओं का विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। निरूपमा समेत सभी मरीजों को हम उत्साहित करते हैं क्योंकि वहां तो उनके साथ उनका कोई परिजन नहीं होता और वह अकेले होते हैं साथ में कोरोना के कारण हतोत्साहित हो जाते हैं। हम इलाज के अलावा उन्हें पूरा समय देते हैं और बात करते हैं ताकि उनकी रिकवरी जल्दी हो सकते है। निरूपमा को कुछ दिन एचडीयू में रखा गया फिर जब वो ठीक हुई तो 3-4 दिन ऑब्जर्वेशन में रखने के बाद उन्हें छुट्टी दे गई। वह अब पूरी तरह से स्वस्थ्य हैं। एमसीएच में मेरी यह पांचवी ड्यूटी है। बीते एक सप्ताह में मैंने कोरोना संक्रमित महिलाओं की 5 सीजर और 7 नॉर्मल डिलीवरी कराई है सारे जच्चा और बच्चा स्वस्थ है। ऐसा देखा गया है कि सामान्य कोरोना से संक्रमित मरीजों की तुलना में गर्भवती कोरोना संक्रमित महिला जल्दी ठीक हो रही हैं।“

एमसीएच को ऐसा स्तर यहां हर दिन अलग-अलग शिफ्ट में काम करने वाले करीब 70 स्टाफ देते हैं। एक समय में यहां 15 से 20 स्टाफ की ड्यूटी लगी होती है जिसमें 4-5 डॉक्टर और इतने ही नर्स होते हैं।

गंभीर से गंभीर मरीज यहां ठीक हो रहे : डॉ. वेद प्रकाश घिल्ले
एमसीएच के प्रभारी व कोविड के नोडल अधिकारी डॉक्टर वेद प्रकाश घिल्ले कहते हैं “एमसीएच को हम बीते डेढ़ साल से पहली प्राथमिकता पर रखे हैं। मरीजों की देखभाल हमारी पहली प्राथमिकता है। हमारे यहां से गंभीर से गंभीर मरीज ठीक होकर घर लौटे हैं। बहुत ही कम ऐसे मौके आए हैं जब हमने यहां से गंभीर हालत में किसी को रेफर किया है। एमसीएच में ठीक होने वाले मरीजों की अनुपात बहुत अधिक है। अब तक एमसीएच से 216 बच्चों की डिलीवरी की जा चुकी है। काम का बोझ न हो इसलिए डॉक्टर नर्स की 6 घंटे की शिफ्ट और वार्ड ब्वॉय व अन्य स्टाफ की ड्यूटी 8-8 घंटे की है। मरीजों में उत्साह के संचार के लिए स्टाफ द्वारा तरह-तरह के जतन किये जाते हैं। हाल ही में मैं मेडिकल कॉलेज के इंचार्ज डॉ दीपक, डॉ गौरव बेहरा (एमडी मेडिसीन) और डॉ ममता पटेल (जूनियर रेजिडेंट) के साथ पूरे अस्पताल का राउंड लिये थे और अपने स्तर पर मरीजों का हाल पूछा और उनकी जरूरतों को जाना। सभी आश्वस्त मिले और यहां की व्यवस्था से खुश नजर आए।“

“मेरी जिंदगी एमसीएच की देन’’
इसी तरह का कहानी राजेन्द्र धृतलहरे, बिलासपुर के मस्तूरी के रहने वाले ने भी बताई| राजेन्द्र 13 अप्रैल तो कोरोना पाज़िटिव पाए गए और तबीयत बहुत खराब होने के बावजूद भी उपचार का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था|

“स्थिति ऐसी कि लगा जीवन यहीं खत्म हो जाए। मेरा अपोलो बिसासपुर से इलाज शुरू हुआ लेकिन उसके बाद हर जगह से निराशा ही हाथ लग रही थी और मैं व मेरा परिवार भटकता रहा पर उपचार नहीं मिला। जीवन के अंतिम दिनों का मुझे आभास हो गया था।‘’

इसी बीच उम्मीदों की एक ताजी किरण जगी जिससे राजेन्द्र ने नया जीवन पाया। भयावह स्थिति में कहीं इलाज का अवसर नहीं मिलने से उनके भाई भूरे लाल धृतलहरे एवं भांजा सुजीत कुर्रे उनके पास आए और बताए कि प्रदीप (एमसीएच रायगढ़ का स्टाफ) ने एमसीएच आने की सलाह दी है क्योंकि वहाँ इलाज की पूरी व्यवस्था है।

“यहां आने के बाद नोडल अधिकारी डॉ. वेदप्रकाश घिल्ले के मार्गदर्शन में मेरा इलाज चला। जिस विश्वास ने मुझे यहां लाया यहां के स्टाफ ने उसे पूरा किया। कोविड के इस भयानक दौर में आप लोगों ने मेरा जो उत्साहवर्धन किया और मुझे एक नई जिंदगी दी वह मैं ताउम्र नहीं भूलूंगा। मेरी जिंदगी आप लोगों की देन है।‘’

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