कलेक्ट्रेट कार्यालय में ही सूचना के अधिकार कानून का खुला उलंघ्न

सिंहघोष/रायगढ़-23.11.21- रायगढ़,देश की तत्कालीन केंद्र सरकार ने देश के सरकारी एवम सहकारी विभागों में भारी भ्रष्टाचार को नियंत्रण में करने के उद्देश्य से सुचना के अधिकार अधिनियम 2005 देश मे लागू किया था। जिसके तहत देश के सभी सरकारी और सहकारी विभागों के द्वारा कराए जाने वाले लोकहित के कार्यों और निर्माणों के अलावा समस्त विभागीय गतिविधियों की जानकारियां मांगने का कानूनी अधिकारी देश के आम नागरिकों को दिया गया ।
आवेदक के द्वारा इस अधिनियम के तहत मांगी गई जानकारी हर हाल में सम्बन्धित विभाग को एक माह के भीतर देना सुनिश्चित किया गया। आवेदक को यह अधिकार भी दिया गया कि उसे निर्धारित समयावधी पर जानकारी नही देने पर वह विभाग के अपीलीय अधिकारी के पास आवेदन दे सकता है। इसके लिए सभी सरकारी और सहकारी विभागों में जन सूचना अधिकारी की और प्रथम अपीलीय अधिकारी की नियुक्तियां की गई। इसके साथ ही यह भी निर्धारित किया गया कि विभाग अपने कार्यालय के बाहर आवश्यक रूप से एक सूचना पटल लगाए जिसमें जन सूचना अधिकारी और अपीलीय अधिकारी का स्पष्ट नाम और मोबाइल नंबर अंकित हो। साथ ही आम नागरिको या आवेदकों की सहायतार्थ आवेदन का फार्मेट भी दृश्य हो। ऐसा न करते पाए जाने पर विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों के विरुद्ध विभागीय और कानूनी कार्यवाहियों की अनुशंसा तक की गई।
हालांकि रायगढ़ जिले के विभिन्न सरकारी विभागों में यह कानून मजाक बन कर रह गया है। जिले के दूसरे शहरों और कस्बों में स्थित सरकारी कार्यालयों में इस कानून के पालन किए जाने की बात तो छोड़िए,खुद कलेक्ट्रेट भवन में स्थित आधा दर्जन से अधिक सरकारी विभागों में जिनमें ट्रेजरी विभाग,डायवर्शन विभाग,जनसम्पर्क विभाग,नजूल विभाग,खनिज विभाग,भु-राजस्व विभाग व अन्य कार्यालयों में कही भी जन सूचना अधिकारी का नाम,सम्पर्क नमंबर अथवा प्रथम अपीलीय अधिकारी के उल्लेख वाल बोर्ड लगा नही दिखता है।
हालाँकि खनिज विभाग में बाकी विभागों की तुलना में थोड़ी बहुत फार्मेलिटी की गई है यहां दो बोर्ड लगाए गए है जिनमे सूचना के अधिकार का प्रारूप उल्लेखित है। खुद जिला खनिज अधिकारी इसे आधा-अधूरा काम मानते है इस लिहाज से उन्होने मीडिया कर्मियों को कुछ बताने की अपेक्षा मातहत कर्मचारी को जल्दी ही आवश्यक सुधार के निर्देश दे दिए।
आइये जाने किस तरह से सूचना के अधिकार अधिनियम का माखौल उड़ाया जाता है?
सामाजिक कार्यकर्ता राजेश त्रिपाठी बताते है कि 21/सितंबर/2021 को आदिवासी विभाग से सूचना के अधिकार के तहत आवेदन लगाया था। जिस पर विभाग ने 29/सितंबर को ही एक पत्र जारी कर 502 रु की राशि जमा करने को कहा । राजेश त्रिपाठी के द्वारा 6 अक्टूबर 2021 को स्वयं जा कर 502 रु जमा कर रसीद प्राप्त किया गया । उनके द्वारा सम्बन्धित कर्मचारियों से मिलकर मांगी गई जानकारी चाही गई तो उनके द्वारा कभी साहब के छुट्टी पर होने की तो कभी दस्तखत नही किये जाने का बहाना किया गया। तब श्री त्रिपाठी जी के द्वारा जन सूचना अधिकारी आदिवासी विकाश विभाग रायगढ के फोन क्रमांक 9424173972 पर सम्पर्क किया गया। तब जनसुचना अधिकारी ने उन्हें अधीनस्थ कर्मचारियाँ से बात करने को कहा। जब अधीनस्थों से बात की गई तो उनके द्वारा आवेदक को जानकारी दी गई कि फाइल तो साहब के टेबल पर ही है उसमें उनके हस्ताक्षर नही हुए है। इस तरह परेशान होकर आवेदक ने प्रथम अपीलीय अधिकारी ए के गढेवाल अपर संचालक आदिम जाति व अनुसूचित जाति विकास विभाग रायपुर के समक्ष प्रथम अपील याचिका 22 नवंबर 2021को लगाई ।
श्री त्रिपाठी कहते है कि रायगढ़ जिले में यह देखा गया है कि किसी भी विभाग में सूचना की अधिकार का बोर्ड नही लगा है,न तो प्रथम अपीलीय अधिकारियों की प्रदर्शित जानकारी लिखी गई है। जबकि ऐसा किया जाना सूचना के अधिकार अधिनियम 2005 कानून का खुला उलंघ्न है।
यहां जिले भर में सम्बन्धित विभाग के द्वारा समय सीमा के अंदर आवेदकों को मांगी गई जानकरी भी नही दी जाती है।।
कमोबेश कुछ इस तरह का अनुभव युवा सामाजिक कार्यकर्ता नरेंद्र चौबे रखते है। उन्होंने न भी यह कहा कि जिले में प्रशासनिक व्यवस्था या तो पूरी तरह से चरमरा चुकी है या कानून तोड़ना इन विभागों की फितरत बन चुकी है। खासकर सूचना का अधिकार कानून,जिसके तहत विभागीय अधिकारियों या कर्मचारियाँ की कारगुजारियां सामने आ सकने की सम्भवनाएँ बनी रहती हैं।