संपादकीय

हे प्रभु धन दे तो किरोड़ीमल जैसों को दे नियत दे तो किरोड़ीमल जैसी दे

सिंहघोष के संस्थापक,स्वतंत्र पत्रकार,कलमकार स्व.श्री शशिकांत शर्मा जी की कलम से….

आधुनिक भामाशाह सेठ किरोड़ीमल जी का 15 जनवरी 1842 को जरा आगमन हुआ था उनका जन्म हरियाणा के ग्राम लुहारी जाटू भिवानी में एक अत्यंत साधारण वैश्य परिवार में हुआ था तथा बाल्यकाल भिवानी में बीता।भिवानी के सेठ मंगतराय के कारिंदे के रूप में कार्य करते हुए उनका संपर्क कोलकाता महानगर से हुआ तथा अंग्रेजी सरकार से एक ब्रिटिश जूटमिल की दलाली का काम प्राप्त हुआ तब से सेठ जी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा वह आगे,और आगे बढ़ते ही चले गए। कुछ बुजुर्गों के कथानुसार किरोड़ीमल ने जूट, कपास,चांदी के तेजी मंदी के सौदे में उस जमाने में करोड़ों रुपए कमा कर अपने नाम को सार्थक किया। सत्य कुछ भी हो किंतु कुछ ही बरसों में साधारण,निर्धन किरोड़ी अपने व्यवसायिक चातुर्य,धंधे की दूरदर्शिता एवं कठोर मेहनत लगन के दम पर सेठ किरोड़ीमलजी लोहारी वाला जरूर बन गए।

किरोड़ी के फर्जी उत्तराधिकारी… सेठ जी का प्रारब्ध ऐसा रहा कि उनके कोई पुत्र नहीं हुआ। संतान के नाम पर एकमात्र पुत्री इमरती देवी हुई जिसका उन्होंने काफी धूमधाम से विवाह सेठ पुरुषोत्तम दास मोडा के संग किया। नगर के पूर्व विधायक विजय अग्रवाल के पितामह स्वर्गीय सेठ डालूराम जी की बहन अशर्फी देवी सेठ किरोड़ीमल जी की धर्मपत्नी थी। यह भी दिलचस्प तथ्य है कि किरोड़ीमल जी को अपना पितामह,नजदीकी रिश्तेदार बतलाने वालों,उनके नाम का दोहन करने वालों,उनके नाम का लाभ उठाकर अपनी राजनीतिक दुकान जमाने चलाने वाले कुछ लोगों का सेठ जी से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। किरोड़ी के इन नकली धूर्त तथाकथित वंशजों से कोई यह तो पूछे कि भैया किरोड़ी से तुम्हारी रिश्तेदारी, रक्त संबंध तो छोड़ो क्या सेठ जी तुम्हारे पैतृक स्थान के भी थे? क्या सेठ जी का तुम्हारे से कोई कुल गोत्र का भी मामूली सा भी संबंध है? क्या किरोड़ी की दो चार पुशतो से भी तुम्हारा कोई नाता है? फिर काहे को किरोड़ी के नाम पर अपना कॉपीराइट (सर्वाधिकार) जता रहे हो?कुछ मिथ्या भाषी वर्तमान के गोएबल्स (झूठ बोलने में माहिर)तो यह कहने से तनिक भी संकोच,शर्म नहीं करते सेठ जी ने जो भी दान पुण्य सत्कर्म किए उनके बाप दादा की नेक सलाह से उनकी प्रेरणा से किए अन्यथा किरोड़ी अपनी बुद्धि सोच से इतना दान निर्माण नहीं करता। अजीब पागलपन,बचकाना हरकत है माल किरोड़ी का,दान किरोड़ी का, नाम किरोड़ी का, जन स्वीकृति किरोड़ी को, किंतु उस पर दावा अधिकार जताऐ कोई और। रायगढ़ तथा इसके आसपास किरोड़ीमल जी के जो सच्चे वास्तविक रक्त संबंधी हैं,उनके गृह ग्राम के हैं,उनके गोत्र वाले हैं,उनके दूरदराज के,पास के रिश्तेदार हैं वह इतने सीधे सरल सज्जन लोग हैं कि उन्होंने कभी इसका इजहार ही नहीं किया ऐसे शालीन,शिष्ट लोग उन नकली फरेबी झूठों का तब भी विरोध कैसे करते, कैसे खंडन्मंडन का सिलसिला छोड़ते और अब भी नहीं करते शायद आगे भी नहीं करेंगे क्योंकि “चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग”

ईश्वर ने दी प्रेरणा किरोड़ीमल जी को…
किरोड़ी पर लक्ष्मी की असीम कृपा हुई उन पर धन की बारिश होने लगी वह करोड़ों में खेलने लगे घनपति बनते ही सेठ जी को ईश्वरी प्रेरणा मिली की दौलत का सदुपयोग करो इसे मानव कल्याण खरचो हरो पीड़ितों की पीड़ा, करो समाज में शिक्षा स्वास्थ्य सुविधा का निर्माण, बनाओ आम आदमी की सुविधाओं के लिए भांति भांति के परोपकारी संस्थान बस फिर क्या था सेठ जी ने दानवीर कर्ण का स्वरूप ग्रहण कर खोल दिया लंगर जनसेवा का बहा दिए स्वजीत संपत्ति को जन कल्याण हेत। आज जबकि रायगढ़ लगभग तीन लाख की आबादी वाला,नगर निगम वाला, इस्पातनगरी, उर्जानगरी औद्योगिक तीर्थ स्थल, विकासशील और भी ना जाने क्या-क्या वाला कैसे-कैसे वाला शहर बन गया है। तब भी यदि यहां से किरोड़ीमल जी के दान, निर्माण को विलुप्त कर दिया जाए तो यह शहर अब भी बदहाल,फटेहाल हो जाएगा।नगर का नटवर स्कूल, डिग्री कॉलेज, पॉलिटेक्निक कॉलेज,आदर्श बाल मंदिर स्कूल,आयुर्वेदिक अस्पताल,नेत्र चिकित्सालय,लेडीज हॉस्पिटल, बुजीभवन धर्मशाला अंतिम तीनों संस्थानों के सामने बना लंबा बगीचा,जिला चिकित्सालय,मेन हॉस्पिटल, भरतकुप, गौरीशंकर मंदिर,मुक्तिधाम,पक्की तालाब(अब लुप्त सेवा कुंज के सामने थी) किरोड़ीमल कॉलोनी,बारहमासी प्याऊ (गद्दी के सामने थी) दानवीर सेठ किरोड़ीमल की ही देन है अमूल्य सौगात हैं। सेठ जी ने हीं मध्यप्रदेश की एकमात्र जूटमिल की स्थापना (आज भी एक ही है) 70 वर्ष पूर्व ही कर दी थी और नगर को आधुनिक मानचित्र पर ला दिया था।किरोड़ीमल जी ने समस्त संस्थानों का निर्माण किरोड़ीमल चैरिटी ट्रस्ट के छांव तले किया। किरोड़ीमल धर्मदा ट्रस्ट की स्थापना के पीछे सेठ जी का यही चिंतन,चिंता थी कि उनके बाद भी उनके द्वारा निर्मित धर्मादाय संस्थाएं बरकरार रहे उनके संचालन में कोई अभाव उत्पन्न ना हो।

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