रायगढ़

विश्व महिला दिवस पर विशेष-रायगढ़ की मदर टेरेसा प्रतिमा,आदिवासी क्षेत्र में 1,000 से अधिक करा चुकी हैं संस्थागत प्रसव…।गांव-गांव में साइकिल से घूमकर स्वास्थ्य जागरुकता की जलाई अलख…।लोगों के प्रति सेवा भाव कम न हो इसलिए नहीं की शादी : प्रतिमा….।।

रायगढ़ 6 फरवरी 2021, जिला मुख्यालय से उत्तर-पूर्व की दिशा में मात्र 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है आदिवासी क्षेत्र बिंजकोट। भालू प्रभावित, वानरों-सर्पों से भरा वन क्षेत्र, यहां व आसपास के 4 अन्य गांव के ग्रामीण कम ही शिक्षित हैं फिर भी बीते 25 साल से यहां एक भी प्रसव घर में नहीं हुआ है। प्रसव के दौरान किसी भी गर्भवती की मौत नहीं हुई है। सिर्फ दो महिलाओं का ऑपरेशन से प्रसव हुआ है। शिशुवती महिलाओं को क्या खाना है क्या नहीं, गर्भवती महिलाओं की देखभाल और 2,700 आबादी वाले इन इलाकों में हर बच्चे का टीकाकरण समय पर होता है, इसका कारण है 54 साल की प्रतिमा दास। वो अपनी साइकिल से दो दशक से अधिक समय से गांव में घूम-घूमकर स्वास्थ्य की अलख जगा रही हैं। कहने को तो वह नर्स के पद पर कार्यरत हैं किन्तु उन्हें इन ग्रामीण इलाकों में बहुत ही सम्मान हासिल है, ग्रामीणों के साथ-साथ स्वास्थ्य विभाग में उन्हें रायगढ़ की मदर टेरेसा कहा जाता है। उन्होंने 1,000 से अधिक संस्थागत प्रसव कराए हैं। प्रसूता की पूरी देखभाल प्रतिमा ही करती हैं।

बीते 25 साल वे बिंजकोट प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में बतौर नर्स अपनी सेवाएं दे रही हैं। जब वह यहां आई थीं तब सड़क भी नहीं थी, एक कमरे में उन्हें स्वास्थ्य केंद्र चलाना पड़ता था, भालू कभी भी केंद्र में आ जाता, सांप तो केंद्र में डेरा डाले रहते थे। वहां के लोग इतने शिक्षित भी नहीं थे इसलिए दवा-इलाज के बारे में लोगों को बिलकुल पता नहीं था, बीमारी होने की सूचना पर वह किसी के घर जाती तो लोग दरवाजा बंद कर लेते थे, एवं अपशब्द कहकर घर से भगा देते थे। धीरे-धीरे उन्होंने लोगों के मन में विश्वास जताया कि दवा और इलाज दोनों सरकारी है और मुफ्त में उपलब्ध है। समय के साथ लोग और प्रतिमा दोनों का एक दूसरे के प्रति लगाव बढ़ता गया और बिंजकोट, नवापाली, बोईरडीह, धनुआडेरा और एकताल के ग्रामीण हर किसी छोटी से छोटी स्वास्थ्य संबंधी समस्या के लिए सबसे पहले अपनी दास दीदी-बुआ-फूफू-मौसी के पास आते गए। अब अपने कार्यक्षेत्र के अंदर आने वाले 5 गांव के अलावे आधा दर्जन दूसरे गांव के लोग भी उनके पास ही आते हैं।

सबसे पहले खोला क्वारंटाइन सेंटर

बीते साल 22 मार्च के बाद लॉकडाउन और फिर क्वारंटाइन जैसे नियम आए पर वैश्विक महामारी के बारे में चर्चा और खबरों ने प्रतिमा को इतना सचेत कर दिया था कि उन्होंने अपने गांव के बाहर पड़ने वाले झारा पारा स्कूल को क्वारंटाइन सेंटर बना दिया था। इसी दिन से 24 लोग यहां रहने लगे। फिर पूरे कोरोना काल में एकताल स्थित जानकी कॉलेज को जिला प्रशासन द्वारा क्वारंटाइन सेंटर बनाया गया तो इसकी प्रभारी प्रतिमा ही थी। मई के महीने में जब 270 झारा आदिवासी प्रवासी इनके सेंटर में आए और वहां से 4 लोग पॉजिटिव आए तो पूरे जिले की नजर उनपर थी और उन्होंने बेहतर तरीके से सारा प्रबंध किया। कोरोना काल में गांव-गांव जाकर सैंपल लेना और आदिवासी लोगों को महामारी के बारे में समझाना और घर में बने रहने जैसा कार्य बड़ी कुशलता से प्रतिमा ने किया।

लोगों की सेवा में आता है आनंद : प्रतिमा

प्रतिमा बताती हैं “झोलाछाप डॉक्टर्स की पकड़ गांव में बहुत ज्यादा होती है। उनके इलाज से लोगों को दूर रखना पहली प्राथमिकता है। कई बार इन झोलाछाप से उनकी बहस भी हुई है, ग्रामीणों को विश्वास में लेकर इन झोलाछाप का प्रभाव अब धीरे-धीरे इन इलाकों में कम हो रहा है।“ शादी नहीं करने की बात पर प्रतिमा कहती हैं “मैं 24 घंटे लोगों की सेवा के लिए तैयार रहती हूं, मेरे प्रति इन गांवों में बहुत सम्मान है इसलिए मुझे कभी भी और किसी भी समय डर नहीं लगा। शादी के बाद जीवन में एक बंधन आ जाता जो मेरे सेवा भाव में बाधा डालता इसलिए मैं बिना शादी किये लोगों की सेवा से बहुत खुश हूं। 5 गांव में कौन सी महिला गर्भवती है, किसके बच्चे का टीका होने वाला है, कौन सी किशोरी को माहवारी संबंधी ज्ञान देना है यह सब मुझे पता रहता है, यही मेरी जिंदगी है और मेरी खुशी भी यही है। स्वास्थ्य विभाग, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी व खंड चिकित्सा अधिकारी का हमेशा से मुझे भरपूर सहयोग मिलता रहा है।“

हमारे लिए इलाज यानी प्रतिमा फूफू

बिंजकोट के ग्रामीण शेष कुमार बताते हैं “मैं अपने बचपने से दास फूफू को देख रहा हूं। हम किसी भी बीमारी का नाम सुनते ही तुरंत उनके पास जाते हैं। वो ही हमारे लिए डॉक्टर, अस्तपताल, इलाज और दवा सबकुछ हैं। पूरे इलाके में उनका बहुत सम्मान है, गांव का हर व्यक्ति उनसे अपनी बीमारी के बारे में बात करता है।“

इसी तरह जिला चिकित्सालय के डॉक्टर राघवेंद्र बहिदार बताते हैं “प्रतिमा जी की गांव में बहुत पकड़ है, कुछ समझ में नहीं आने पर वह बाकायदा हमसे सलाह मशविरा करती हैं। ग्रामीणों के बीच रहकर समर्पण से काम करने वाले लोग विरले ही होते हैं उनमें प्रतिमा जी एक हैं।“

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