
सभी विधानसभा जीतने के बाद भी विकास से कोसो दूर औद्योगिक जिला रायगढ़…।।
सिंहघोष/रायगढ़.15.07.22.रायगढ़ से जाने और रायगढ़ को आने वाली सड़कें जिन पर हर दिन किसी न किसी की मौत की मुहर लगी है। सड़कों की हालत ऐसी कि लोगों का चलना दूभर है। कहते हैं कि सड़कों से ही विकास की इबारत लिखी जाती है पर जिले की चकाचक सड़कें सारी चुगली कर देती है। हां इन सड़कों के नाम पर करोड़ों के वारे-न्यारे नेताओं ने कर लिया है। यह रायगढ़ है जहां कागज की सड़क भी बनी है।
सड़क तो बस एक झरोखा है औद्योगिक नगरी में विकास का एक भी काम शायद सत्तारूढ़ पार्टी लोगों को बता सके। डीएमएफ और सीएसआर फंड का भगवान मालिक है। साढ़े तीन साल की सरकार को स्थानीय लोग चुपचाप देख रहे हैं क्योंकि विरोध करने की उनकी हिम्मत नहीं है। जितनी अंधेरगर्दी इन तीन सालों में मची शायद रायगढ़ ने कभी देखी हो। हर दिन अखबारों में जुल्मों-सितम की घटनाएं छप रही हैं। शायद इसी कारण जिले में अब सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ माहौल बनने लगा है। पार्टी शायद इसे भांप नहीं रही है क्योंकि कम-से-कम 8 धड़ों में बंटी कांग्रेस को उसके अपने ही बट्टा लगा रहे हैं। कुल मिलाकर सूबे के मुखिया भूपेश बघेल के सपनों को आग लगाने के लिए यहां के नेताओं ने पूरी तैयारी कर ली है।
स्थानीय लोग जिला कांग्रेस पार्टी की कार्यशैली से नाराज हैं। इसके बाद भी कांग्रेसी सत्ता के नशे में इतने चूर है कि उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा।
मजेदार बात यह है कि कई धड़ों में बंटी पार्टी जहां सिर्फ बचे समय में झोंकों जितना झोंक सको की रेस लगी है ऐसे में क्या पार्टी दोबारा वापसी करेगी।
विदित हो कि कुछ महीने पहले कांग्रेस पार्टी ने राज्य में अपने विधायकों के प्रदर्शन को आंकने के लिए आंतरिक सर्वे किया था जिसमें विधायकों के प्रदर्शन,क्षेत्र में सक्रियता, कार्यकर्ताओं से मुलाकात, सत्ता और संगठन से तालमेल आदि बिंदु शामिल थे। 70 में से 34 विधायकों का प्रदर्शन कमजोर निकला था। 15 साल से काबिज बीजेपी के एंटी इनकमबेंसी का फायदा कांग्रेस को हुआ था पर क्या कांग्रेस साढ़े तीन साल में ही इस राह पर चल पड़ी है।
अपनी ढपली अपना राग
ग्रामीण ने सारंगढ़ बनने के बाद अपनी राजनीति को वहीं तक सीमित कर लिया है, शहर वाले ठेके और कोयले के काले खेल में मस्त हैं। खास वाला समूह पार्टी के लिए भस्मासुर बना हुआ है। इनके लिए विरोध यानी किसी भी हद तक। कापू वाले नेता जो अब सारंगढ़िया हो गए हैं वह आत्ममुग्धता में इतने डूबे हैं कि गर्त में जा रही पार्टी दिखाई नहीं दे रही है। लैलूंगा वाले नेताजी तो विकास की रसधारा में इतने डूबे हैं कि वनांचल को क्रांकीट के जंगल बनाने में मस्त है। महाजन और सज्जन की कृपा पाने तमनार में शहर के बड़े नेता अंधाधुंध जमीन खरीद रहे हैं। धरमजगढ़ के लाल तो कालरी से ही लाल हो गए हैं उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं। मंत्री जी को तो कुछ लोग अपने चश्में से विकास दिखा रहे हैं और गांव-खेड़े में ही घूमकर रह गए।
सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं ने सभी जगह अपनी पैंठ बनाई है। लेकिन जब जिले की सड़कों की बात आती है तो उन्हें सांप सूंघ जाता है। जिले की एक भी सड़क ठीक नहीं और इसे बनाने के लिए पांचों विधायकों और नगरीय निकाय के नेताओं की रूचि नहीं दिखती। शायद ही किसी नेता ने सड़क बनाने को लेकर आवाज बुलंद की हो जबकि इन्हीं सड़कों से लोगों को सरोकार है। कोई भी यह नहीं चाहता कि खराब सड़क के कारण किसी के घर का चिराग बुझे। सड़क को लेकर जिले के सभी विधायक अभी तक गंभीर नहीं है संभव है यही सड़क आगामी विधान सभा में सबसे बड़ा मुद्दा बने।