संपादकीय

जो वोटों का दाम वसूलते हैं उन्हें कोई अधिकार नहीं है जन प्रतिनिधियों पर उंगलियां उठाने का ?

सिंहघोष के संस्थापक,स्वतंत्र पत्रकार स्व.श्री शशिकांत शर्मा जी द्वारा। साप्ताहिक सिंहघोष के अंक क्रमांक 18, 22.12 2009

सिंहघोष… ग्राम पंचायतों के चुनावों से लेकर स्थानीय निकायों के लिये भारतीय मतदाता अपने सबसे बड़े प्रजातांत्रिक , संवैधानिक अधिकार बैलेट पेपर तथा ई.वी.एम. का प्रयोग कर , अपने सेवकों अर्थात जन प्रतिनिधियों का चुनाव करते हैं । भारत में विश्व का सबसे बड़ा जनतंत्र है तथा यहां सरकारों का चयन बुलेट द्वारा नहीं बैलेट द्वारा ही किया जाता है । अगर मतदाताओं ने चुनावें में निडर , निष्पक्ष , सजग होकर तथा सभी प्रकार के चुनावी मायावी प्रलोभनों , हथकण्डों , अवैधानिक कृत्यों से प्रभावित हुये बगैर मतदान नहीं किया तो सहज ही यह अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्हें कैसे जन सेवक मिलेंगे । 61 वर्ष पुराने प्रजातंत्र के समक्ष आज भी अनेकों विकराल प्रश्न खड़े हुए हैं जिन्हें नहीं सुलझाया जा सका है । क्या भारत के बहुसंख्य मतदाताओं को अपने लिये सुयोग्य पंच – सरपंच , जनपद सदस्य , जिला पंचायत सदस्य , पार्षद , विधायक , सांसद चुनने का आज भी शउर है ? क्या आज भी हिन्द का वोटर संघर्षशील , ईमानदार , चरित्रवान , त्यागी , राष्ट्रभक्त जन प्रतिनिधि चुनने की समझ , साहस रखता है ? बहुतायत मतदाता तो पंच से लेकर लोकसभा सदस्य तक को चुनते समय बिलकुल अंधे – बहरे – गूंगे होकर ठेठ अनपढ़ , मूर्ख , गुलाम की तरह वोट देकर आ जाते हैं । मतदाताओं के दिलो दिमाग में यह विचार ही नहीं होता कि वे 4-5 वर्षो हेतु अपने भाग्य निर्माता , निति – नियंता का चयन कर रहे हैं । क्या वोटरों का यह परम कर्तव्य नहीं होना चाहिए कि वे किसी भी अवाली मवाली , चोर डाकू , गुंडा – बदमाश , बेईमान – बिकाऊ , सुविधाभोगी – आरामतलब प्रत्याशी को वोट ही न देवें । यह मतदाताओं के हाथों में ही तो है कि वे अपने वोटिंग पावर के अमोध अस्त्र का प्रयोग करते हुए विवादापस्द , कलंकित – लांछित , चुनावों के वक्त को छोड़कर जनता से कभी कोई संपर्क न रखने वाले अवसर वादियों , जन सेवा के मुखौटाधारियों , राजनीति को व्यापार बनाने वालों काअपेटियों , इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में समूल नाश कर दे ।

क्या मतदाता इस तथ्य से अनभिज्ञ रहता है कि उसके । द्वारा निर्वाचित जनप्रतिनिधि की आर्थिक पारिवारिक , सामाजिक हालत चुनाव लड़ने के समय कैसी थी ? और पद पर आने के बाद कुछ ही वर्षों के भीतर उसे कारूं का खजाना कहां से और कैसे हासिल हो गया ? तब मतदाता एक बार गलती करने के बाद क्यों झक मारकर उसे ही दुबारा वोट देते हैं ? विधायक , सांसद , मंत्री बनते ही इनके परिवारों का दूध पीता बच्चा भी एकाएक किस तकनीक से करोड़पति बन जाता है ? नेताओं के निकम्मे , नालायक , बदशक्ल , बद्दिमाग , बद्तमीज , भाई – भतीजे – बेटे पोते – चांचा ताऊ सभी रातों रात व्यापार में , कमाने में कैसे विशेष दक्ष हो जाते हैं ? ये मिट्टी को भी स्पर्श करते हैं तो वह सोना बन जाती है । इन सबकी प्रापर्टी , बैंक बैलेंस , वाहनों , आभूषणों , नगदी में जादुई इजाफा अल्पकाल में ही हो जाता है और ये सामान्य अलीबाबा से रईस अलीबाबा बन जाते हैं । क्या मतदाता इन सब हकीकतों से नावाफिक रहता है ? H पांच वर्षों तक केवल चुने हुए जनप्रतिनिधियों को गाली देने से ही , उन्हें कोसने से ही , उन पर दोषारोपण करने से ही काम नहीं चलने वाला । ऐसे वोटरों की तादाद बेशुमार है जो अपने अमूल्य वोट का सौदा करते हैं । बड़ी संख्या में ऐसे मतदाता चावल , कंबल , साड़ी , पेट्रोमैक्स , क्रिकेट कीट , कीर्तन मंडली के साजो सामान , महिलाओं की श्रृंगारिक सामग्री लेकर मतदान करते हैं । एक तबका सार्वजनिक हित के नाम पर अपने घरों के सामने नल – बोरिंग लगवाकर वोट देता है । भारी संख्या में ऐसे वोटरों की भी होती है जो कि पोलिंग के समय तक इसी गुंताड़े में रहते हैं कि प्रत्याशी उन्हें दारू की दरिया में डूबोकर रखे , मछली – मुर्गा – खस्सी – बकरा सूअर कटवाकर खिलाता रहे । बहुत लोग तो डायरेक्ट नगदी पर विश्वास करते हैं वो अपने वोट का वाजिब दाम वसूल कर ही वोट देने जाते हैं । ज्यादा चालाक लोग तो वोटों के , एवज में घड़ी , डी.वी.डी. , वी.सी.डी.प्लेयर , टी.वी. इत्यादि अत्याधुनिक उपभोक्ता सामग्री भी चुनाव के दौर में हथियाने में सफल हो जाते हैं

4 ऐसे बोट बेचू लोगों को , निम्रतर प्राणियों को क्या अधिकार रह जाता है कि वे विजयी प्रत्याशी से उसके कार्यालय में तनिक भी कोई शिकायत कर सकें । जिसने वोटों की मण्डी में खुद को विक्रय किया है , नीलाम किया है वह , वादा खिलाफी का , उदासीनता का , कर्तव्य विमुखता का दोष मढ़ कर उसे आरोपों के कटघरे में कैसे खड़ा करेगा ? यह बात भी अकाट्य है कि ‘ जब सारे ही कुंए में भांग घुली हुई हो ‘ तो कोई क्या करे ? ‘ जब सारा ही शहर दस्ताने पहने हुए हो तो किसके हाथों में खून की तलाश करें ‘ ? एवं ‘ जिसकी भी पूंछ उठाकर देखते हैं , वही मादा निकलता है ‘ के हालात हैं । मतदाता के समक्ष यह भी भारी दुविधा रहती है कि वह अनगिनत गधों में से किसे सबसे कम गधा मानकर अपना नुमाईंदा बनायें ? वोटर को तो ‘ सांपनाथ ‘ , ‘ नागनाथ ‘ में से किसी एक को ही चुनना पड़ता है कि यह उसकी प्रजातांत्रिक विवशता है । परन्तु इनके सबके बावजूद मतदाता इतना तो कर ही सकता है कि वोट देने के बदले में वह किसी भी प्रकार की घूस – रिश्वत स्वीकार न करे । किसी भी प्रकार से कुल , गोत्र , जाति , धर्म , संप्रदाय , क्षेत्रीयता के आधार पर वोट न दे । संकीर्ण स्वार्थों , तुच्छ विचारों , क्षणिक लाभों , अलाली काहिली से ऊपर उठकर जितना संभव हो सके सर्वोत्तम का चयन करे । पूरा समुद्र वह बेशक न छान पाये किंतु अपना लोटा तो छानकर पीने का प्रयास प्रत्येक मतदाता को करना ही चाहिए ।

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