संपादकीय

कड़वा सच:कलयुग में बह रही कैसी विषाक्त बयार है,धर्म गुरु विधानसभाओं,संसद में जाने को बेकरार हैं.हिन्दू धर्म-दर्शन में…।।

सिंहघोष के संस्थापक स्व.श्री शशिकान्त शर्मास्वतंत्र पत्रकार” जी की कलम से….


साधु-साध्वियां-संत,बाबा-महंत,ऋषि-मुनि,जोगी
योगी,यति-जति के संबंध में अमूमन यही आम धारणा है कि ये सब सांसारिकता से विरक्त ईश्वर एवं साधना-भक्ति में आसक्त रहते हैं.
ये सब धर्माचार्य,धर्म पुरुष काम-क्रोध-मद-मोह-माया से पूर्णतः परे रहकर धर्म तथा मानव कल्याण हेतु समर्पित रहते हैं.हिन्दू धर्म-संस्कृति के अनुसार ये देव पुरुष कठिन जप-तप-साधना के लिए आबादी से दूर निर्जन स्थलों में,
वनों में,गुफाओं,खोहों,कंदराओं,
पर्वतों,पहुँच विहीन क्षेत्रों,दुर्गम स्थानों में अपना डेरा/धूनी जमाते हैं.और वर्षो की जटिल तपस्या के पश्चात अनेकों दुर्लभतम
आध्यात्मिक,पारलौकिक शक्तियां
अर्जित करते हैं.इन ईश्वरप्रदत्त वरदानों का ये श्रेष्ठजन मानव-समाज कल्याण हेतु सदुपयोग करते हैं.धरा पर व्याप्त रोग-शोक-निर्धनता-अज्ञानता-हिंसा-अनाचार-राग-द्वेष आदि का शमन-दमन करने में इनका दैविक बल अहम भूमिका का निर्वहन करता है.
हजारों वर्षों से जन आस्था ही नही वरन जन मान्यता भी यही है कि “साधु-साध्वियां-संत,बाबा-महंत,ऋषि-मुनि,जोगी-योगी,यति-जति” को राजनीति,राजमहलों,
राजसिंहासनों की कोई कामना नही होती है.इनके प्रति कोई अनुराग,आशक्ति,आकर्षण इन दिव्य पुरुषों,आध्यात्मिक गुरुओं,धर्माचार्यों के मन-मस्तिष्क में रंच मात्र भी नही होता है.सिर्फ प्रभु भक्ति में रसासिक्त रहना और लोक कल्याण की शीतल बरसात करते रहना ही इनके जीवन का लक्ष्य होता है.
अब संक्षेप में वैदिक-पौराणिक काल के कुछ उदाहरण.
परशुराम,वशिष्ठ,विश्वामित्र,कपिल,
संदीपनी,द्रोणाचार्य,दधीचि,दुर्वाषा
आपस्तंभ,याज्ञवल्क्य जैसे अनगिनत ऋषि-मुनि,गुरु-दिव्य पुरुषों-महान आध्यात्मिक-अपराजेय आचार्यों ने कभी भी राजा बनने की,राजगद्दी हथियाने की,सत्ता सुंदरी की गुदाज बाहों में समाने की,शासन के चकाचौंध कर देने वाले सुखों में लिप्त हो जाने की सपने में भी सोची??नही नही.
ये राजा के बुलावे पर या शासक के कर्तव्यच्युत होने,सत्ताधीश के अहंकारी-अत्याचारी बन जाने पर महलों में क्षण मात्र के लिए पधारते थे तथा राजा-राजपरिवार को उचित सलाह,आवश्यक चेतावनी,राजधर्म का पालन करने की कठोर आज्ञा,अनीति-अधर्म-अन्याय से बचे रहने की शिक्षा वह भी बाकायदा भरे राजदरबार में देकर तुरंत अपनी तपोभूमि-आश्रम की ओर प्रस्थित हो जाते थे.कोई राजकीय आतिथ्य तक स्वीकार नही करते थे.
अब देखें आज का परिदृश्य——-
विगत 30 वर्षों से जम्बूद्वीपे भरतखंडे आर्यावर्त में आधुनिक साधु-साध्वियां-संत,बाबा-महंत,
ऋषि-मुनि,जोगी-योगी,यति-जति मरे जा रहे हैं सत्ता के गलियारों में घुसने को.
चूंकि ये सब ढपोर शंख हैं.
तथाकथित धर्माचार्य हैं.अशक्त धर्म पुरुष हैं.सब के सब ढोंगी-पाखंडी प्रभु भक्त हैं.इनके पास एक राई जितनी भी किसी
अलौकिक शक्ति,दिव्य बल,
रहस्यमयी ताकत के ये स्वामी नही हैं अतएव ये सारे धूर्त-कपटी लगे रहते हैं राजनैतिक दलों और राजनेताओं की चाकरी में.
इन धर्म के कलंकों का न धर्म से कोई नाता है और न ही इंसानियत
से.नैतिकता-चरित्र-त्याग-परोपकार-परमार्थ के शव को ये प्रारंभ में ही अपने समीप की किसी नाली में बहा(फेंक)चुके होते हैं.
समझ में नही आता कि धर्म के ये आधुनिक ठेकेदार ईश पूजा-पाठ,साधना-आराधना-भक्ति कब करते होंगे इनकी पूरी दिनचर्या तो राजनीतिक जोड़-तोड़-फोड़,
सियासी साज़िशों,पद लिप्सा, दुनियावी लफड़ों-पचड़ों में ही व्यतीत होती है.ये कैसे मठाधीश-पीठाधीश्वर-शंकराचार्य हैं जिनके पास न तो लेश मात्र भी आध्यात्मिक बल है,न नैतिक दम है,न चारित्रिक शुचिता की पूंजी है.सबके अपने अपने राजनैतिक अखाड़े हैं, सबकी अपनी राजनीति है,सबकी अपनी सियासी महत्वाकांक्षाएं हैं सब सत्ता की लूट में अपना अपना हिस्सा लेने को व्यग्र हैं.अनेकों ने तो विधि-विधान से खुद को धर्म
में दीक्षित होने के विशाल आयोजन भी करवाये हैं.सच्चाई यही है कि ये कलयुगी साध्वियां-साधु वास्तव में सुस्वादु हैं इनके दिल-ओ-दिमाग में हर पल विधायक-सांसद-मंत्री-मुख्यमंत्री के पद हथियाने का उमड़ता-घुमड़ता रहता सत्तानशींनी का काला जादू है.
अब तो इन धर्माचार्यों ने अपने भक्तों(अंध) को सर्वधर्म सम भाव का उपदेश तक देने से तौबा कर ली है.”विश्व का कल्याण हो”
,”प्राणियों में सद्भाव हो” अब केवल औपचारिक नारे बन चुके हैं.
क्रिश्चयनिटी ने दशकों पूर्व पोप पाल से समूचे यूरोप सहित अमरीकी महाद्वीप ने मुक्ति पा ली है.पोप जी राजनीति में कोई दखलंदाज़ी नही कर सकते वे वेटिकन सिटी में सिर्फ धार्मिक कृत्यों में ही मशरूफ रहते हैं. बड़े दिनों,25 दिसम्बर प्रभु ईसा मसीह के जन्म दिन पर वे संदेश दे देते हैं उनकी इतनी सीमित भूमिका रह गई है ईसाइयत में. न ही उनके चेले- चपाटे राजनीति में घुसने की धमा चौकड़ी करते हैं.
इसी तरह तुर्की में लगभग आधी शताब्दी से भी ज्यादा पहले मुस्तफावाद का पतन हो चुका है वहां की सरकारों-नेताओं ने आधुनिकता,प्रगतिशीलता को व्यापक रूप में आत्मसात कर लिया है.
कहने को कोई कुछ भी कहे,कितना ही दुष्प्रचार,अफवाहें फैलाए परन्तु यह हक़ीक़त है आज मुल्ला-मौलवियों के फतवों पर 90% मुसलमान कोई ध्यान नही देते इन्हें गंभीरता से लेते ही नही हैं. सियासी कट्टर मुस्लिम पार्टियों की भारत सहित दुनिया में कितनी दयनीय दशा है सर्वविदित है.मुस्लिम लीग को भारत में कभी भी मुसलमानों ने कोई तवज़्ज़ो ही नही दी.इस दल का विशाल भारत में केवल केरल के मल्लपुरम जिले में ही वजूद है.
घोर आश्चयर्जनक तथ्य है कि देश में धर्म अफीम मिश्रित चासनी के नागरिक आदी होते जा रहे हैं यह नशा अवाम पर सर चढ़ कर बोल रहा है.
ऊपर वर्णित सभी प्रकार के धर्माचार्य छल-कपट-प्रपंच-मिथ्याचार-असामाजिक कर्मों-अमानवीय कृत्यों की वैतरणी में गोते मार रहे हैं सत्ता की मेनका संग रास लीला कर रहे हैं.भोग-विलास में संलिप्त हैं अपने मूल धर्म-कर्म की अंत्येष्ठि कर के.
कभी कभी तो मुझे यह बोधित्व होने लगता है कि मैं विशुद्ध सांसारिक-साधारण आदमी इन तथाकथित देव पुरुषों से धार्मिक- वैचारिक-सैद्धांतिक-नैतिक-सामाजिक-चारित्रिक और जीवन शैली के धरातल पर कई गुना श्रेष्ठ हूँ, सच्चा-अच्छा हूँ. निष्पाप-निष्कलंक-निर्विवाद-बेहतर मानव हूँ.

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