(समापन किश्त) अब”हिटलरशाही” की कुछ औऱ बातें–सिंहघोष के प्रबंध सम्पादक स्व.शशिकांत शर्मा “स्वतंत्र पत्रकार” जी की कलम से…।।

🔦बिना टिप्पणी🔦
हम अक्सर आंदोलनों,
सभाओं,प्रदर्शनों,रैलियों
में यह नारा सुनते हैं “हिटलरशाही नही चलेगी”तथा”जो हिटलर की चाल चलेगा वो कुत्ते की मौत मरेगा”.
आइये आपका इस हिटलर से संक्षिप्त परिचय करा दूँ.
पार्षद चुनाव से राजनीति में प्रवेश करने वाले हिटलर ने जर्मनी में तूफानी दौरे आरम्भ कर दिये.
वह अपनी सभाओं,जन-सम्पर्क में उग्र राष्ट्रवाद,
देशज गौरव-राष्ट्रीय स्वाभिमान,जर्मन नस्ल-रक्त शुद्धि,जर्मन नस्ल की सर्वश्रेष्ठता,विपक्षी नेताओं की चरित्र हत्या उन पर मिथ्यारोप एवं यहूदियों को तबाह करने की दहाड़ लगाता था.वह कहता था तुम मुझे देश की बागडोर दो मैं जर्मनी को दुनिया का सिरमौर बना दूँगा.हिटलर की सभाओं में युवाओं,
अंध राष्ट्रवादियों की बेशुमार भीड़ रैला के रूप में उमड़ने लगी.
उसकी हर बात पर श्रोता जोरदार तालियां बजाते थे.
जब वह कहता था कि मैं अगर सत्ता में आया तो उन सभी अपमानजनक संधियों को फाड़ फेंकूँगा जो हम पर जबरन थोपी गई हैं इनमें वर्साय संधि भी शामिल है,तो जर्मनी वाले खासकर युवा वर्ग उसके दीवाने हो जाते थे.
देश में हिटलर का काला जादू सिर चढ़ कर असर दिखाने लगा था.वह राष्ट्रीय हीरो बन चुका था.
इसी बीच जर्मनी में प्रधानमंत्री का चुनाव आ गया.हिटलर ने इसमें अपनी दावेदारी रख चुनाव लड़ा किंतु वहाँ के लोकप्रिय राष्ट्रपति ने हिटलर का खुला विरोध किया जिसकी वजह से हिटलर प्र.मं. नही बन पाया.
परन्तु राष्ट्रपति हिंडेनबर्ग (यादाश्तानुसार) के आकस्मिक निधन हो जाने के कारण वहाँ इस पद के चुनाव हुये जिसमें हिटलर भी उम्मीदवार था.
हिटलर के तिलस्मी व्यक्तित्व के कमाल,उसके बड़बोलेपन,लोक-लुभावन नारों,आसमानी वादों,झूठे-थोथे आश्वासनों के दम पर वह राष्ट्रपति का चुनाव जीत गया.
ऐसे होते हैं सनकी-ज़ालिम हिटलर
प्रथम महायुद्ध के बाद वियेना(यादाश्तानुसार) में एन.ओ.(राष्ट्र संघ) का सम्मेलन आयोजित किया गया था.
यू.एन.ओ.(संयुक्त राष्ट्र संघ) की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात हुई है.
जर्मनी के शिष्ट-मंडल में हिटलर भी शामिल था. वियेना सम्मेलन में हिटलर ने एकदम रौद्र रुप दिखाते हुए “वर्साय संधि” की प्रति फाड़ दी और गरजते हुए कहा ये कागज का टुकड़ा हमारे लिए हमारे देश वापस लौटने का कोई गेट पास नही है.
हिटलर के इस व्यवहार से सारे राष्ट्र सन्न रह गये और जर्मन वापसी पर हिटलर का ऐतिहासिक वीरोचित स्वागत-सत्कार हुआ.वह समूचे राष्ट्र की आन-बान-शान और देश की अस्मिता का प्रतीक पुरूष बन गया.
पेश है “हिटलरशाही” की मामूली सी बानगी——–
स्वास्तिक चिंह को धारण करने वाला हिटलर अत्यन्त क्रूर और वहमी था.असहिष्णुता उसमें कूट-कूट कर भरी हुई थी. अपनी आलोचना से उसे विकट परहेज था.उसमें विरोध सहने का रंच मात्र भी माद्दा नही था.
विरोधियों के चरित्र हनन,उनके दमन में उसे महारथ हासिल थी.
झूठ बोलने,अफवाहें फैलाने में उसका कोई सानी नही था.वह घोर जातिवादी,नस्लवादी,
रक्तशुद्धता का पैरोकार था.सियासत हथियाने हेतु, गद्दी पर जमे रहने के लिए हिटलर ताजिंदगी हिँसा, बाहुबल,छल-कपट-पाखंड सर्व आपराधिक हथकंडे आजमाता रहा.
हिटलर विरोधियों की सभाएं सफल नही होने देता था सभाओं में सड़े अंडे,टमाटर विपक्षियों पर बरसवाना,मवेशी घुसवा देना,अपने अनुयायियों से सभा में हूटिंग करवाना,
जहाँ विरोध पक्ष की सभा हो रही है उसके ठीक सामने,अगल-बगल में अपने दल की सभा करवाना,लाउडस्पीकर का मुँह सीध में करवाने जैसे कुकृत्यों का जनक था हिटलर.उसके लाखों अंध भक्तों का आचरण भी उसी की भांति हो चला था.
दिन-रात राजनैतिक साज़िशों-षड्यंत्रों में तल्लीन रहता था हिटलर.
हिटलर का जीवन दर्शन था की एक झूठ को सौ बार बोलो अंततः वह सच हो जायेगा.
हिटलर ने विरोधियों की सैकड़ों कत्लगाह बनवाई जिन्हें गैस चैंबर का नाम दिया गया इनमें जहरीली गैसों से लाखों निर्दोषों का वहशियाना वध कर दिया गया.यातनागृहों में किये गये अकथनीय जुल्म-ओ-सितम की बेहिसाब सच्ची कहानियां इतिहास के काले पन्नों में दर्ज हैं.
इस सनकी,मनोरोगी,रक्त पिपासु,नर पिशाच,
अनपढ़,गंवार,जाहिल अधिनायक ने अपनी निर्दयी गुप्तचर संस्था “गेस्टापो”,अपनी बदनाम प्रचार एजेंसी के कारण भी काफी कुख्याति अर्जित की.
इसकी चांडाल-चौकड़ी में हिमलर,बोरमैन,गोयवेल्स जैसे नर राक्षस थे.
हिटलर जो चुनाव में भारी बहुमत से चुनकर आया था ने तानाशाह बन अपने अहंकार,युद्धोन्माद,सनकीपन के कारण दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध में धकेल दिया जिसमें 10 करोड़ से ज्यादा ज़िंदा इंसान शव बन गये.विश्व का मानचित्र,
दिशा,शक्ति संतुलन बदल गए.
हे ईश्वर दुनिया में अब कभी भी हिटलर सा दूसरा दरिंदा पैदा न करना.
मेरे भारत में तो कदापि नही.कदापि नही.
“रात भर का है मेहमाँ अंधेरा,
किसके रोके रुका है सवेरा”.
“सिकंदर भी आये कलन्दर भी आये,
न कोई रहा है,न कोई रहेगा”.