
ऊपर वर्णित संस्थाओं का निर्माण/गठन लोक कल्याण-जनहित-जनसेवा-जन चेतना के लिए ही किया जाता है.
शोषण,दमन,अन्याय के प्रतिकार के लिए अपने ज़ायज़ हक़ों,सुरक्षा,सम्मान के लिये ही किया जाता है.
शासकीय-प्रशासनिक-शक्ति संपन्न तबके की ज़ुल्म,
ज़्यादती के खिलाफ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिए एवं कुछ पर्वों-समारोहों-आयोजनों के लिये तथा सामाजिक एकता,सुदृढ़ता के लिए भी संस्थायें बनाई जाती हैं.
क्लबों-चेंबरों-एसोसिएशंस-संघों-समितियों-मोर्चों-दलों-पार्टियों-संगठनों का निर्माण इसलिये तो कतई नही किया जाता कि किसी संगठन अथवा उसके किसी सदस्य को असामाजिक गतिविधियों में लिप्त रहने,कुकर्मों के मलकुंड में धंसे रहने,भयादोहन करने,वसूली करने,काले 2 नंबरी व्यापार करने की अबाध स्वतंत्रता है.
कोई संगठन अपने सदस्यों द्वारा किसी भी नागरिक-व्यापारी-अधिकारी-कर्मचारी को धमकाने-
चमकाने,ब्लैकमेल करने,चोरी चकारी,तस्करी,जमाखोरी कालाबाजारी,अवैध कुकृत्य करने में कैसे मददगार हो सकता है!!??
जो संगठन महिलाओं को उत्पीड़ित करने,उनसे छेड़छाड़,
उनके दैहिक शोषण के मामलों में अपने मेंबर को संरक्षण प्रदान करे,उसकी हौसलाअफजाई की खातिर एकता का मुज़ाहिरा करे,ऐसे कुपात्रों,समाज कंटकों की वकालत करे,उनके कांडों पर पर्दा डाले,उन्हें कानूनी कार्यवाही से बचाने के प्रयास करे,उनके पक्ष में दलीलें तो समझ लो यह मानव,मानवीयता,न्याय,ईमान-धर्म,ज्ञान,विवेक के पतन की चरम पराकाष्ठा है समाज के अधोगति की निशानी है.
ऐसे संगठनों पर धिक्कार है,लानत है इन्हें तो शर्मसार होकर स्वतः सुपुर्द-ए-खाक हो जाना चाहिए.
यथाशीघ्र इसी विषय पर एक विस्तृत-व्यापक और स्पष्टता के साथ लेख अगले अंक में